अमृतसर , नवंबर 23 -- पंजाब भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के प्रवक्ता प्रो सरचंद सिंह ख्याला ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को पत्र लिख कर चंडीगढ़ को संविधान के अनुच्छेद 240 के अंतर्गत लाने के प्रस्ताव पर अपनी गहरी चिंता व्यक्त की है तथा इस पर तत्काल पुनर्विचार करने की मांग की है।

प्रो. ख्याला ने कहा कि यह सिर्फ़ एक प्रशासनिक संशोधन नहीं है, बल्कि पंजाब की ऐतिहासिक, संवैधानिक और भावनात्मक पहचान से जुड़ा एक बेहद संवेदनशील मुद्दा है। उन्होंने अपने पत्र में लिखा है कि केंद्र सरकार ने बार-बार आश्वासन दिया था कि चंडीगढ़ पंजाब को सौंप दिया जाएगा। प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने 1970 में और 1985 के राजीव-लोंगोवाल समझौते में भी 26 जनवरी 1986 को चंडीगढ़ पंजाब को देने का स्पष्ट वादा किया गया था।

प्रो. ख्याला ने कहा, "लेकिन यह दुखद है कि इनमें से कोई भी वादा आज तक पूरा नहीं हुआ।" उन्होंने कहा कि चंडीगढ़ का पंजाब के लोगों के साथ गहरा भावनात्मक जुड़ाव है, क्योंकि विभाजन के बाद जब लाहौर पाकिस्तान में चला गया, तो राष्ट्रीय धरोहर और एक नई शुरुआत के तौर पर पंजाब के कई गाँवों को उखाड़कर चंडीगढ़ को पंजाब की राजधानी बनाया गया। इसलिए, चंडीगढ़ पंजाब के लिए सिर्फ़ भूगोल का मामला नहीं, बल्कि मिट्टी, पहचान और अधिकारों का भी मामला है।

प्रो. ख्याला ने कहा कि यदि चंडीगढ़ को अनुच्छेद 240 के दायरे में लाया गया, तो चंडीगढ़ पूरी तरह से केंद्र द्वारा नियंत्रित प्रशासनिक इकाई बन जाएगा। निर्वाचित प्रतिनिधियों की भूमिका समाप्त हो जाएगी और शासन नौकरशाही के हाथों में केंद्रित हो जाएगा, जिससे संघीय ढांचा कमजोर होगा और पंजाब में राजनीतिक, भावनात्मक और सामाजिक असंतोष पैदा होगा।

प्रो. ख्याला ने याद दिलाया कि पंजाब एक सीमावर्ती राज्य है और पाकिस्तान समेत विदेशी ताकतें लगातार अस्थिरता पैदा करने की साजिशें रचती रहती हैं। आज पंजाब कानून-व्यवस्था, सीमा अस्थिरता, मादक पदार्थों की तस्करी, आर्थिक चुनौतियों और लक्षित हत्याओं जैसी गंभीर परिस्थितियों से जूझ रहा है। ऐसी परिस्थितियों में चंडीगढ़ जैसे संवेदनशील मुद्दे पर कोई भी एकतरफा निर्णय न केवल पंजाब, बल्कि पूरे देश की सुरक्षा के लिए खतरा पैदा कर सकता है।

पंजाब में डबल इंजन वाली सरकार बनाने के लिए भाजपा को किसी मज़बूत क्षेत्रीय दल के समर्थन की ज़रूरत होगी। लेकिन अगर केंद्र सरकार चंडीगढ़ के मामले में कोई ऐसा कदम उठाती है जिससे पंजाब की भावनाएँ आहत होती हैं, तो पंजाब में भाजपा के किसी मज़बूत क्षेत्रीय पंथिक दल के साथ गठबंधन करने की संभावना कम हो जाएगी। कोई भी पंथिक दल ऐसे कदम का समर्थन नहीं कर पाएगा और इससे भाजपा की भविष्य की राजनीतिक संभावनाओं पर गंभीर असर पड़ेगा।

उन्होंने कहा कि 1997 का अकाली-भाजपा गठबंधन केवल एक चुनावी समझौता नहीं था, बल्कि हिंदू-सिख एकता का प्रतीक था। उस विश्वास को बनाए रखना समय की मांग है। प्रो. ख्याला ने संविधान (131वां संशोधन) विधेयक, 2025, जिसके माध्यम से चंडीगढ़ को अनुच्छेद 240 के दायरे में लाया जाना है, पर तत्काल पुनर्विचार का सुझाव दिया और अपील की कि पंजाब की ऐतिहासिक और संवैधानिक भावनाओं का सम्मान करते हुए चंडीगढ़ को पंजाब को सौंपने की प्रक्रिया शुरू की जानी चाहिए।

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