नयी दिल्ली , नवंबर 28 -- ग्रामीण क्षेत्रों में बौद्ध धरोहर के संरक्षण को लेकर यहां स्थिति डॉ. अंबेडकर अंतरराष्ट्रीय केंद्र में तीन दिवसीय अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन शुक्रवार को शुरू हुआ। ,इंडियन ट्रस्ट फॉर रूरल हेरिटेज एंड डेवलपमेंट (आईटीआरएचडी) की ओर से आयोजित इस सम्मेलन में भूटान, श्रीलंका, नेपाल, जापान, कोरिया, अमेरिका और ब्रिटेन सहित कई अन्य देशों के प्रतिनिधि हिस्सा ले रहे हैं, जिनमें विद्वान, संरक्षण विशेषज्ञ, नीति निर्माता, डॉक्टर और मठीय प्रतिनिधि शामिल हैं। ये सभी भारत की विशाल ग्रामीण क्षेत्र के बौद्ध धरोहर के संरक्षण से जुड़े मुद्दों और अवसरों पर विचार करने के लिए एकत्रित हुए हैं।
इस दौरान आईटीआरएचडी के अध्यक्ष एस. के. मिश्रा ने बताया कि ग्रामीण धरोहर स्थलों के पुनरोद्धार के लिए एक अकादमी स्थापित करने के लिए आंध्र प्रदेश में पांच एकड़ भूमि आवंटित की गयी है, जो ग्रामीण क्षेत्र बौद्ध धरोहर के संरक्षण और विकास के लिए समर्पित होगी।उन्होंने लोगों से अपील की कि वे ग्रामीण स्थलों के दस्तावेजीकरण और संरक्षण में सहयोग करें।
इस दौरान पद्म विभूषण से सम्मानित डॉ. करण सिंह ने कहा, "भारत की ताकत उसकी बहुलता में है।" उन्होंने बताया कि यद्यपि आज बौद्ध धर्म के अनुयायी कम हैं, फिर भी इसने देश की सांस्कृतिक धरोहर पर गहरा प्रभाव डाला है। उन्होंने ग्रामीण बौद्ध स्थलों के संरक्षण के प्रयासों का स्वागत करते हुए कहा कि स्थानीय समुदायों को इसे अपनी धरोहर मानना चाहिए। उन्होंने कहा, "भारत हमेशा बुद्ध की भूमि रहेगा।" उन्होंने लोगों से आग्रह किया कि वे विभाजन से ऊपर उठकर सहयोग और सामंजस्य की भावना में काम करें।
धर्माचार्य शान्तुम सेठ ने ग्रामीण क्षेत्रों में शिल्पकारों द्वारा पत्थर और वस्त्र कार्य से लेकर स्थानीय पाककला तक की परंपराओं को संरक्षित करने की महत्ता पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा, "भारतीयों को बुद्ध को अपने पूर्वज के रूप में पुनः स्वीकार करना चाहिए।" उन्होंने बताया कि अन्य देशों, जैसे चीन, बौद्ध तीर्थ स्थलों के विकास में तेजी से आगे बढ़ रहे हैं। उन्होंने शिक्षा के महत्व पर जोर देते हुए कहा कि बौद्ध धरोहर का पुनरुद्धार "संगठित कार्य" है, जिसमें सभी को शामिल होना चाहिए।
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