सोनभद्र , दिसंबर 01 -- गीता प्रचारक अरुण चौबे ने सोमवार को कहा कि व्यक्ति के जीवन में भौतिक उपलब्धियों को कभी मृनुष्य के जीवन की सफलता का मापदण्ड नहीं माना जा सकता। गीता के अनुसार हर मानव के हृदय में स्थित आत्मा ही परमात्मा का विशुद्ध अंश है और गीतोक्त कर्म से ही व्यक्ति अपने जीवन के जन्म-मरण के चक्र से मुक्ति पाते हुए परमात्मा की प्राप्ति कर मनुष्य जीवन की असली उपलब्धि प्राप्त कर सकता है।
गीता जयंती के अवसर पर आयोजित विचार गोष्ठी में श्री चौबे ने बताया की आत्मिक संपत्ति ही व्यक्ति की असली संपत्ति है। गीता में भगवान श्री कृष्ण ने अर्जुन से कहा की इस शरीर से तू इन्द्रियों को परे अर्थात सूक्ष्म और बलवान जान। इन्द्रियों से परे मन है, यह उनसे भी बलवान है। मन से परे बुद्धि है और जो बुद्धि से भी अत्यन्त परे है, वह तुम्हारी आत्मा है। इसलिए काम क्रोध मोह लोभ का त्यागकर गीतोक्त विधि से अपने आत्मिक संपत्ति का विकास करना ही मनुष्य का असली लक्ष्य होना चाहिए। इसलिए सम्पूर्ण भाव से अपने हृदय स्थित आत्मा का विकास करें। मनुष्य को इससे अधिक क्या चाहिए। इससे उत्तम लक्ष्य या परिणाम हो भी क्या सकता है।
संसार की तमाम उथल-पुथल, जीवन की अनेक उलझनों का समाधान इस गीतोक्त पथ में सन्निहित है। जाति- पांति, वर्ण- संप्रदाय, लिंग-गोत्र, क्षेत्र- कबीला के भेदभाव से परे गीता शाश्वत सत्य का दिग्दर्शन कराती है। विश्व में प्रचलित संपूर्ण धार्मिक विचारों के आदि उद्गम स्थल भारत के समस्त अध्यात्म और आत्मस्थिति दिलाने वाले संपूर्ण शोध के साधन- क्रम का स्पष्ट वर्णन इस गीता में है, जिसमें ईश्वर एक, पाने की क्रिया एक, पथ में अनुकम्पा एक तथा परिणाम एक है। वह है प्रभु का दर्शन, भगवतस्वरुप की प्राप्ति और काल से अतीत अनन्त जीवन। गीता भाष्य" यथार्थ गीता" इसके यथार्थ भाव को हृदयंगम करने का सहज माध्यम है। ईश्वर की इस वाणी को मनन- चिंतन तथा अनुसरण कर हम अपने जीवन को सफल बनाते हुये अपने प्रियजनों के लिए अध्यात्म पूरित वातावरण की विरासत सौंपने में सफल होंगे।
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