जयपुर , दिसंबर 21 -- राजस्थान में पूर्व नेता प्रतिपक्ष एवं भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के वरिष्ठ नेता राजेंद्र राठौड़ ने पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के अरावली पर्वत माला को लेकर दिए बयान को भ्रामक करार देते हुए कहा है कि उनका यह दावा "90 प्रतिशत अरावली समाप्त हो जाएगी" पूरी तरह असत्य और भ्रामक है और यह सिर्फ भ्रम फैलाने का प्रयास हैं।
श्री राठौड़ ने रविवार को यहां प्रेस वार्ता में कहा कि वास्तविक स्थिति यह है कि अरावली क्षेत्र का लगभग 25 प्रतिशत हिस्सा अभ्यारण्य, राष्ट्रीय उद्यान और आरक्षित वनों में आता है, जहां खनन पूरी तरह प्रतिबंधित है। इसके अलावा पूरे अरावली क्षेत्र में से केवल लगभग 2.56 प्रतिशत क्षेत्र ही सीमित, नियंत्रित और कड़े नियमों के तहत खनन के दायरे में आता है। उच्चतम न्यायालय ने स्पष्ट निर्देश दिए हैं कि जब तक इंडियन काउंसिल ऑफ फॉरेस्टरी रिसर्च एंड एजुकेशन द्वारा अरावली क्षेत्र का विस्तृत वैज्ञानिक मापन और सतत खनन प्रबंधन योजना तैयार नहीं हो जाती, तब तक कोई नया खनन पट्टा जारी नहीं किया जा सकता। ऐसे में अरावली के नष्ट होने की बात करना गहलोत जी का सिर्फ भ्रम फैलाने का प्रयास है।
उन्होंने कहा कि सौ मीटर का मानदंड केवल ऊंचाई तक सीमित नहीं है। न्यायालय द्वारा स्वीकृत परिभाषा के अनुसार सौ मीटर या उससे ऊंची पहाड़ियों, उनकी ढलानों और दो पहाड़ियों के बीच 500 मीटर के क्षेत्र में आने वाली सभी भू-आकृतियां खनन पट्टे से पूरी तरह बाहर रखी गई हैं, चाहे उनकी ऊंचाई कुछ भी हो। यह व्यवस्था पहले से अधिक सख्त और वैज्ञानिक है।
श्री राठौड़ ने कहा कि गत 18 दिसंबर को श्री गहलोत ने अरावली बचाओ के नाम पर सोशल मीडिया पर एक अभियान शुरू किया और अपनी प्रोफाइल पिक्चर बदली लेकिन यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि न तो कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा, न कांग्रेस नेता राहुल गांधी एवं न कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे और न ही पूर्व उपमुख्यमंत्री सचिन पायलट ने अपनी प्रोफाइल पिक्चर बदली। यह साफ दर्शाता है कि जिस अभियान का दावा किया जा रहा है, उसमें स्वयं उनकी पार्टी का समर्थन भी उनके साथ नहीं है।
उन्होंने कहा कि जब किसी मुद्दे पर पार्टी के शीर्ष नेता भी उनके साथ खड़े न हों, तो स्पष्ट हो जाता है कि यह अभियान पर्यावरण संरक्षण नहीं, बल्कि राजनीतिक दिखावा है। अरावली जैसे संवेदनशील विषय पर प्रतीकात्मक राजनीति नहीं बल्कि न्यायालय के आदेशों और वैज्ञानिक तथ्यों के अनुसार ठोस कार्रवाई की आवश्यकता होती है।
श्री राठौड़ ने कहा कि सर्वे ऑफ इंडिया के विश्लेषण से स्पष्ट है कि कमेटी की परिभाषा लागू होने पर अरावली क्षेत्र में खनन नहीं बढ़ेगा बल्कि और अधिक सख्ती आएगी। राजस्थान के राजसमंद में 98.9 प्रतिशत, उदयपुर में 99.89 प्रतिशत, गुजरात के साबरकांठा में 89.4 प्रतिशत और हरियाणा के महेंद्रगढ़ में 75.07 प्रतिशत पहाड़ी क्षेत्र खनन से प्रतिबंधित रहेगा। इसके अलावा, राष्ट्रीय उद्यान, इको-सेंसिटिव ज़ोन, रिज़र्व एवं प्रोटेक्टेड फ़ॉरेस्ट और वेटलैंड्स में खनन पूरी तरह बंद है।
वर्तमान में अरावली क्षेत्र के 37 ज़िलों में कुल भौगोलिक क्षेत्र का केवल 0.19 प्रतिशत (277.89 वर्ग किमी) हिस्सा ही कानूनी खनन पट्टों के अंतर्गत है जिसमें भी लगभग 90 प्रतिशत खनन राजस्थान, नौ प्रतिशत गुजरात और एक प्रतिशत हरियाणा तक सीमित है। इसलिए 90 प्रतिशत अरावली पहाड़ियों के खत्म होने की बात कानूनी और भौगोलिक रूप से पूरी तरीके से असत्य है।
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