नयी दिल्ली , दिसंबर 01 -- उद्योगपति अनिल अंबानी ने बॉम्बे उच्च न्यायालय के उस फैसले को उच्चतम न्यायालय में चुनौती दी है जिसमें भारतीय स्टेट बैंक के रिलायंस कम्युनिकेशंस लिमिटेड (आरसीओएम ) और उसके संस्थापक के ऋण खाते को "धोखाधड़ी" के तौर पर वर्गीकृत करने वाले निर्णय को सही ठहराया गया था।

श्री अंबानी की ओर यह शीर्ष अदालत में पिछले हफ्ते दायर की गयी अपील अभी तक सुनवाई के लिए लिस्ट नहीं हुई है।

गौरतलब है कि बॉम्बे उच्च न्यायालय की न्यायाधीश रेवती मोहिते डेरे और न्यायाधीश नीला गोखले की खंड पीठ ने तीन अक्टूबर को फैसला सुनाया था कि श्री अंबानी आरसीओएम के "प्रोमोटर" और "नियंत्रणकर्ता " के तौर पर एसबीआई के धोखाधड़ी वर्गीकरण के नतीजों का सामना करेंगे।

एसबीआई ने वर्ष 2012 और 2016 के बीच आरसीओएम, रिलायंस टेलीकॉम और रिलायंस इंफ्राटेल को कुल 3,600 करोड़ रुपये से ज़्यादा के ऋण दिए थे। ऋण का भुगतना नहीं करने के के बाद, अगस्त 2016 में आरसीओएम के खाते को गैर-निष्पादित परिसंपत्ति (एनपीए) घोषित कर दिया गया था।

बीडीयो इंडिया ने 2013-2017 के दौरान फोरेंसिक ऑडिट किया, जिसमें कई गड़बड़ियां सामने आईं, जिसके बाद एसबीआई की धोखाधड़ी पहचान समिति ने नवंबर 2020 में श्री अंबानी के खाते को फ्रॉड के तौर पर वर्गीकृत किया।

यह फैसला स्टेट बैंक ऑफ इंडिया बनाम राजेश अग्रवाल (2023) में उच्चतम न्यायालय के फैसले के बाद वापस ले लिया गया, जिसमें ऐसे वर्गीकरण से पहले पहले से नोटिस और सुनवाई ज़रूरी कर दी गई थी। एसबीआई ने बाद में 20 दिसंबर, 2023 को आरसीओएम और श्री अंबानी समेत उसके निदेशकों को एक नया कारण बताओ नोटिस जारी किया।

जून 2025 में, बैंक ने राशि के डायवर्जन, एग्रीमेंट ब्रीच और रिलेटेड-पार्टी ट्रांजैक्शन का हवाला देते हुए ऋण खाते को फिर से फ्रॉड घोषित कर दिया। एसबीआई ने रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया (आरबीआई) को भी इस बारे में जानकारी दी और केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई से संपर्क करने के लिए कदम उठाए।

इसके बाद श्री अंबानी ने एसबीआई की कार्रवाई को यह कहते हुए चुनौती दी कि वह सिर्फ एकगैर-कार्यकारी निदेशक थे और उन्हें गलत तरीके से निशाना बनाया गया था। उन्होंने यह भी कहा कि अपना बचाव पेश करने का मौका नहीं दिया गया। उच्च न्यायालय ने इन दलीलों को यह कहते हुए खारिज कर दिया कि एसबीआई ने फ्रॉड वर्गीकरण पर आरबीआई के जुलाई 2024 के निर्देश का पालन किया है।

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