चंडीगढ़ , दिसंबर 01 -- पंजाब आम आदमी पार्टी (आप) ने सोमवार को पूर्व मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह और बादल परिवार पर तीखा हमला बोलते हुए उन्हें राज्य के संसाधनों को लूटने की 20 सालों तक जारी रही साजिश के लिए ज़िम्मेदार ठहराया।
पार्टी मुख्यालय में प्रेस कॉन्फ़्रेंस को संबोधित करते हुए पंजाब के वित्त मंत्री हरपाल सिंह चीमा ने कहा कि पंजाब की जनता द्वारा नकारे गये नेता, जिनमें दो बार के पूर्व कांग्रेसी मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह, उनके साढ़ू सिमरनजीत सिंह मान और पूर्व उपमुख्यमंत्री सुखबीर सिंह बादल शामिल हैं, एक बार फिर सत्ता में लौटने के सपने देख रहे हैं। श्री चीमा ने ज़ोर देकर कहा कि पंजाब अब इन दो परिवारों की लूट की राजनीति को और ज़्यादा बर्दाश्त नहीं करेगा।
श्री चीमा ने बताया कि 2002-2007 की कैप्टन सरकार के दौरान बादल परिवार के खि़लाफ़ लगभग 4000 करोड़ रुपये की बेहिसाबी संपत्ति से जुड़े मामले दर्ज किये गये थे। कैप्टन अमरिंदर सिंह ने जानबूझकर इन मामलों की कार्रवाई में देरी की। 2007 में जब अकाली-भाजपा सरकार सत्ता में आयी तो सभी मामले तुरंत ख़ारिज कर दिये गये। श्री चीमा ने तीखे शब्दों में कहा, "यह कोई इत्तेफ़ाक़ नहीं था, यह बादल और कैप्टन परिवारों के बीच एक-दूसरे को सुरक्षित रखने और राज्य की लूट को जारी रखने के लिए किया गया गहरा, छिपा हुआ समझौता था।"वित्त मंत्री ने बेअदबी की घटनाओं को लेकर भी दोनों परिवारों की सरकारों की नाकामी को उजागर किया। उन्होंने 2017 में 'गुटका साहिब' हाथ में लेकर झूठा वादा करने के लिए कैप्टन अमरिंदर सिंह की भी कड़ी आलोचना की। उन्होंने कहा कि कैप्टन अमरिंदर ने न्यायमूर्ति रंजीत सिंह और न्यायमूर्ति जोरा सिंह आयोगों का इस्तेमाल सिर्फ पंचायत चुनावों में राजनीतिक लाभ उठाने के लिए किया, लेकिन दोषियों के खि़लाफ़ कोई ठोस कार्रवाई नहीं की।
कैप्टन अमरिंदर सिंह की राजनीतिक विश्वसनीयता पर हमला करते हुए श्री चीमा ने उन्हें 'दल-बदलू राजनीति का मास्टर' करार दिया, जिसमें उनके अकाली दल से कांग्रेस, फिर अपनी पार्टी बनाने और अंत में भाजपा में शामिल होने के सफ़र का जिक्र किया। उन्होंने 'आप' के पुराने दावे को दोहराया कि 2017-2022 के कार्यकाल के दौरान कैप्टन अमरिंदर ने कांग्रेस से ज़्यादा भाजपा के मुख्यमंत्री की तरह काम किया। उन्होंने कहा कि कैप्टन अमरिंदर एक दुश्मन देश की महिला से रिश्तों के कारण पैदा हुई राष्ट्रीय सुरक्षा चिंताओं के कारण केंद्र की भाजपा सरकार के दबाव में थे जो किसी संवैधानिक पद पर बैठे व्यक्ति के लिए अनुचित है।
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