भोपाल/श्योपुर , दिसंबर 21, -- मध्यप्रदेश का कूनो राष्ट्रीय उद्यान अब केवल चीतों के लिए ही नहीं, बल्कि प्रकृति प्रेमियों और पर्यटन के शौकीनों के लिए भी एक प्रमुख आकर्षण बनता जा रहा है। घने जंगल, ऊँचे-ऊँचे पहाड़ और पठार, विस्तृत घास के मैदान, देव खो सहित अन्य प्राकृतिक स्थल तथा रोमांचक चीता सफारी कूनो को एक अनूठा पर्यटन अनुभव प्रदान करते हैं।

कूनो राष्ट्रीय उद्यान की जीवनरेखा मानी जाने वाली कूनो नदी इस पूरे क्षेत्र की रीड की हड्डी की तरह है। यह नदी राष्ट्रीय उद्यान को दो भागों में बांटते हुए ऊँचे पहाड़ों, पठारों और घास के मैदानों से होकर बहती है और आगे चलकर चंबल नदी में मिल जाती है। चूंकि यह इलाका चंबल क्षेत्र का हिस्सा माना जाता है, इसलिए यहां कभी दस्युओं और बागियों की कहानियां भी खूब प्रचलित रही हैं। लेकिन अब प्रोजेक्ट चीता ने कूनो को एक नई और सकारात्मक पहचान दिला दी है।

वर्ष 2018 में राष्ट्रीय उद्यान का दर्जा पाने वाला कूनो लगभग 748 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र में फैला है, जो श्योपुर और मुरैना जिलों तक विस्तृत है। इसका नामकरण कूनो नदी के नाम पर किया गया है, जो यहां के पारिस्थितिकी तंत्र को जीवन देती है। वर्ष 1981 में इसे वन्यजीव अभयारण्य घोषित किया गया था।

प्रोजेक्ट चीता के तहत नामीबिया और दक्षिण अफ्रीका से लाए गए चीतों ने कूनो को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाई है। चीतों के साथ-साथ यहां तेंदुआ, भेड़िया, जंगली कुत्ते, नीलगाय, चिंकारा, सांभर, हिरण, जंगली सूअर कूनो नदी के तटो पर धूप सेंकते मगरमच्छ और कई तरह के पक्षी तथा अन्य वन्यजीव इस राष्ट्रीय उद्यान में पाए जाते हैं। यही कारण है कि कूनो वन्यजीव प्रेमियों और फोटोग्राफरों के लिए एक आदर्श स्थल बन गया है।

अब यहाँ पर्यटकों के ठहराव और सुविधाओं को ध्यान में रखते हुए मध्यप्रदेश पर्यटन बोर्ड द्वारा इवॉक कंपनी के सहयोग से कूनो क्षेत्र में टेंट सिटी की स्थापना की गई है जिसे कूनो फॉरेस्ट रिट्रीट नाम दिया गया है। आधुनिक सुविधाओं से युक्त यह टेंट सिटी जंगल के बीच सुरक्षित, आरामदायक और यादगार अनुभव प्रदान कर रही है।

यहां पर्यटक मेडिटेशन, योगा, शाम को संगीत का आनंद, रात के समय आकाश में तारों और ग्रहों को दूरबीन (टेलीस्कोप) के माध्यम से नजदीक से देखने तथा उनसे जुड़ी रोचक जानकारियां प्राप्त कर सकते हैं। बच्चों के लिए पहाड़ों के बीच खेल और ज्ञान का अनूठा संगम भी उपलब्ध है। यही नहीं टेंट सिटी से पहाडों के बीच डूबते ढलते हुए सूर्य को देखना भी एक आकर्षक अनुभव देता है। साथ ही यहाँ के लज़ीज व्यंजन मन को तृप्त कर देने वाले है, सुबह का नास्ता तो दोपहर और शाम के भोजन में स्वाद और स्वास्थ्य को ध्यान में रखकर बनया जाने वाले स्वादिष्ट व्यंजन कूनो फॉरेस्ट रिट्रीट की पहचान बनता जा रहा है।

कूनो फॉरेस्ट रिट्रीट में पर्यावरणविद शुभम पुरोहित तथा नीतेश गुप्ता जहाँ हमें कूनो नदी, राष्ट्रीय उद्यान और यहाँ के वन्यप्राणीयों के बारे में जंगल सफारी के दौरान रोचक जानकारी देते है, वही कूनो नदी तथा देव खो जैसे प्राकृतिक तथा धार्मिक स्थल से हमारा परिचय करवाते है।

जबकि सुबह-सुबह योग के माध्यम से हमारे तन और मन को स्वस्थ रखने के लिए जयंती योग क्रिया करवाती है। जयंती शारीरिक मुद्राओं (आसन), सांस लेने की तकनीकों (प्राणायाम), और ध्यान (मेडिटेशन) का अभ्यास करवाती है, जिसका उद्देश्य शरीर, मन और आत्मा को जोड़ना, स्वास्थ्य में सुधार करना और आंतरिक शांति प्राप्त करना होता है। यही नहीं शाम ढलते सूर्य के साथ अंकिता प्रधान ध्वनि ध्यान (साउंड मेडिटेशन) के द्वारा हमें अपने जीवन में ध्यान के माध्यम से मन को शांत करने, तनाव कम करने और आंतरिक शांति पाने के लिए सुखदायक ध्वनियों (जैसे सिंगिंग बाउल, बाइनॉरल बीट्स, 'ॐ' जाप) का उपयोग कर गहरी एकाग्रता, भावनात्मक उपचार और शारीरिक विश्राम देने की तकनीक बताती है, जो मानसिक स्पष्टता और आध्यात्मिक जुड़ाव बढ़ाता है।

कूनो में सुबह और शाम की जीप सफारी पर्यटकों को चीतों और अन्य वन्यजीवों को उनके प्राकृतिक परिवेश में देखने का रोमांच देती है। इसके साथ ही देव खो, आसपास के जलप्रपात, प्राकृतिक ट्रेल्स और कूनो नदी का शांत सौंदर्य पर्यटकों को प्रकृति से जोड़ता है।

पर्यावरणविद शुभम पुरोहित बताते है कि कूनो राष्ट्रीय उद्यान घूमने का सबसे उपयुक्त समय अक्टूबर से मार्च तक है। कूनो राष्ट्रीय उद्यान में बर्रेड घाट की ऊंची पहाड़ीयों से जब कूनो नदी को निहारते है तो यह दृश्य अदभुत होता है, सरपीले आकार में बहती कूनो नदी रुडयार्ड किपलिंग के कहानी संग्रह जंगल बुक की नदी और उसे निहारते मोगली की याद ताज़ा कर देती है। यह दृश्य मन को आनंदित कर देते है जो जीवन भर सजोकर रखने वाला दृश्य होता है।

वही अब कूनो राष्ट्रीय उद्यान में बढ़ती सुविधाओं, बेहतर प्रबंधन और अंतरराष्ट्रीय पहचान के चलते यह स्थान मध्यप्रदेश के प्रमुख इको-टूरिज्म स्थलों में तेजी से उभर रहा है। यहाँ का प्राकृतिक वातावरण तथा वन्यजीवों सहरिया आदिवासीयों के बीच का अनुभव एक नया अनुभव देता है। तो जब भी मौका लगे कूनो जरूर जाए।

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