अलवर , नवम्बर 27 -- राजस्थान का प्रसिद्ध लोकनृत्य कालबेलिया नृत्य यूं तो काफी पुराना है लेकिन इसकी विश्वस्तर पर जो मौजूदा पहचान है उसका काफी कुछ श्रेय जिस शख्स को जाता है वह है गुलाबो सपेरा।

कालबेलिया नृत्य की विश्व में एक अलग पहचान है। राजस्थान में कोई बड़ा सांस्कृतिक आयोजन हो तो वह कालबेलिया नृत्य के बिना अधूरा होता है। राजस्थान सरकार पर्यटन विभाग पर्यटकों को आकर्षित करने के लिये राजस्थान की संस्कृति का प्रचार करती है तो उसमें कालबेलिया नृत्य की झलक अवश्य दिखलाई जाती है। इस नृत्य में कालबेलिया जनजाति की युवतियां रंग बिरंगे परिधानों में सर्प की भाव भंगिमा को दर्शाते हुए थिरकती हैं। यह नृत्य अपनी ऊर्जावान और जीवनशैली के लिये विश्व में प्रसिद्ध है। वर्ष 2010 में इसे यूनेस्को ने मानवता की अमूर्त सांस्कृतिक विरासत की प्रतिनिधि सूची में शामिल किया था।

इस नृत्य को इस मकाम तक पहुंचाने का काफी कुछ श्रेय गुलाबो सपेरा को है। गुलाबो ने बचपन से ही इस नृत्य में दक्षता हासिल कर ली। किशोरावस्था में ही कालबेलिया नृत्य में उसकी पहचान बन गई। राज्य का कोई भी सांस्कृतिक कार्यक्रम हो तो उसमें गुलाबो की मौजूदगी अवश्य रहती थी। गुलाबो ने कालबेलिया नवाचार करके इसमें और निखार ला दिया। गुलाबो की लोकप्रियता के चलते नृत्य ने राज्य की सीमा से निकलकर देशभर के सांस्कृतिक क्षेत्र में अलग पहचान बना ली। शीघ्र ही कालबेलिया नृत्य की धूम विदेशों तक पहुंच गयी। इसके बाद से गुलाबो 170 देशों में अपनी कला का प्रदर्शन कर चुकी हैं। वर्ष 2016 में उन्हें पद्म श्री पुरुस्कार से नवाजा गया।

गुलाबाे वह शख्सियत बन गयी जिसने अपने पूरे समाज को ही बदल दिया। दरअसल कालबेलियां समुदाय में एक कुरीति थी कि लड़कियों को पैदा ही दफना दिया जाता था। इसी कुरीति का गुलाबो भी शिकार हो गयी थी, लेकिन भाग्य को कुछ और मंजूर था जिसके चलते वह चमत्कारिक ढंग से बच गयी। बाद में उसी प्रथा को गुलाबो ने अपने समाज से ही खत्म कराकर अपने समाज की लड़कियों के लिए नई राह खोली । अपने समाज के लिए गुलाबो मिसाल बन गई । अब समाज की लड़कियां पढ़लिख कर नई इबादत लिख रही हैं।

अलवर में हुए मत्स्य उत्सव के दौरान अपनी प्रस्तुति देने आई गुलाबो ने अपने जन्म की चर्चा करते हुए बताया कि उनके माता-पिता के तीन लड़के और तीन लड़कियां पहले से ही थी । उनके जन्म के सिर्फ एक घंटे बाद ही उन्हें दफनाया दिया गया था। उन्होंने बताया, "जब मां को होश आया तो उन्होंने मेरे बारे में पूछा तो प्रसव कराने वाली दाई ने बताया कि लड़की हुई है जिसे दूर ले जाकर गड्ढे में दबा दिया गया। मां ने मेरी मौसी से मिन्नत की लड़की दुर्गा का रूप होती है। इसलिए मुझे वह चाहिए । क्योंकि मेरी मां देवी की पुजारी थी। तो घर वालों ने बताया कि अब तक वह मर गई होगी, लेकिन मेरी मां को विश्वास था कि वह जिंदा होगी। रात 12 बजे उस स्थान पर मेरी मां को ले जाया गया, जहां मुझे दबाया गया जब गड्ढा खोदकर निकाला तो मेरी सांस चल रही थी। इसके बाद परिवार में हलचल मच गई।"उन्होंने बताया कि उसके पिताजी सांप दिखाने का काम करते थे। पिताजी उसे इस डर से अपने साथ ले जाते थे कि कहीं पीछे से इस बेटी को मार न दे। क्योंकि जमीन में गाड़ने के बाद भी जिंदा रहने से मां बाप ने उन्हें भाग्यशाली माना। उन्होंने बताया, "सांपों को पिलाने के लिए जो दूध मिलता था उसी में से मुझे पिला दिया जाता ।मैं बचपन से ही सांपों के साथ खेली, बड़ी हुई। जो बीन बजती थी उसी दौरान बीन की स्वर लहरी से मैं नाचना सीखी। जब पिताजी मुझे अपने साथ ले जाने लगे इसका भी विरोध समाज के लोगों ने किया। जब मैं सात वर्ष की थी तभी हमे समाज से निष्कासित कर दिया गया । जब मेरे भाई बड़े हुए तो उनके साथ मैं जयपुर आ गई। अब जयपुर में ही रहती हूं।"उन्हाेंने बताया कि कम उम्र में ही वह कार्यक्रमों में नृत्य करने जाने लगी। पहले प्रदर्शन जब अमरीका में किया तो उसकी ख्याति बढ़ गई। उन्होंने बताया, "उसके बाद समाज ने मुझे अपनाने की बात कही। मैंने उनसे एक वचन लिया कि मैं समाज में तभी शामिल हो सकती हूं जब पैदा होते ही लड़कियों को मारना बंद किया जाए। समाज ने इस पर सहमति व्यक्त की।" उन्होंने बताया कि अब हालात इस तरीके के हैं कि हमारे कालबेलिया समाज में बच्चियां पढ़ाई की नई इबादत लिख रही हैं। नौकरियां करने लगी हैं अपनी सांस्कृतिक परंपराओं और धरोहर को आगे बढ़ा रही हैं। उनकी खुद की बेटियां भी इस सांस्कृतिक धरोहर को आगे बढ़ाने में पूरा सहयोग कर रही है।

गुलाबो ने बताया कि उसका जन्म 1970 में घुमंतू कालबेलिया समुदाय में हुआ था। उसके पिता द्वारा उसका नाम गुलाबो रखा गया था। वर्ष 2016 में पद्म श्री मिलने के बारे में गुलाबो ने बताया, "मुझे यकीन नहीं था कि मुझे पदम श्री मिलेगा।' उन्होंने कहा, "मुझे 28 मार्च को पदमश्री पुरस्कार मिला था। मैं इस तरह अब हर वर्ष अपने स्तर पर समाज की बेटियों को ऐसे पुरस्कार बांटती हूं जिससे समाज की लड़कियां आगे बढ़े । उन्हें प्रोत्साहित करती हूं और उनकी कोशिश रहती है कि कोई भी लड़की अभाव के कारण अपनी कला ,अपनी पढ़ाई से वंचित न हो।'गुलाबो ने नयी पीढ़ी का आह्वान किया कि हमें अपनी संस्कृति को जिंदा रखना है ,अपनी धरोहर को जिंदा रखना है तो जमीन से जुड़ना होगा । पाश्चात्य संस्कृति अपनी जगह सही हो सकती है, लेकिन हमारी सामाजिक और भारतीय संस्कृति बहुत जरूरी है और नई पीढ़ी को अपनी संस्कृति में रहना चाहिए । उन्होंने पदम श्री अवार्ड के लिए मोदी सरकार का आभार व्यक्त किया।

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