नागपुर , दिसंबर 23 -- कांग्रेस ने आरोप लगाया है कि 'महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना' (मनरेगा) की जगह लागू किये गये वीबी-जी राम जी अधिनियम ने ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार की गारंटी की संकल्पना को समाप्त कर दिया है।
कांग्रेस समिति (एआईसीसी) के राष्ट्रीय प्रवक्ता अभिषेक दत्त ने नागपुर में मंगलवार को मीडिया से बात करते हुए कहा कि मनरेगा के तहत रोजगार की मांग ग्राम पंचायतों और जिला परिषदों की मांग के आधार पर दी जाती थी। उन्हाेंने आरोप लगाया कि नये कानून में हालांकि यह -कि रोजगार कब और कहां दिया जायेगा- इसका अधिकार पूरी तरह से केंद्र सरकार के पास है। उन्होंने कहा कि इस बदलाव ने ग्रामीण रोजगार के मांग-आधारित स्वरूप को खत्म कर दिया है।
श्री दत्त ने यह भी आरोप लगाया कि योजना के वित्तपोषण स्वरूप में भी बदलाव किया गया है। पहले जहां केंद्र खर्च का 90 प्रतिशत वहन करता था और राज्य 10 प्रतिशत , अब वहां केंद्र का हिस्सा घटाकर 60 प्रतिशत कर दिया गया है, जबकि राज्यों को 40प्रतिशत योगदान देना होगा।
उन्होंने कहा, वित्तीय योगदान कम करने के बावजूद केंद्र ने कार्यान्वयन पर पूरा नियंत्रण बनाये रखा है। उन्होंने यह भी दावा किया कि कानून में एक प्रावधान है, जिसके तहत कृषि मौसम के दौरान 60 दिनों तक कोई रोजगार नहीं दिया जायेगा, जो ग्रामीण मजदूरों को नकारात्मक रूप से प्रभावित कर सकता है और अकुशल एवं अर्ध-निपुण श्रमिकों के आर्थिक शोषण को बढ़ा सकता है।
कांग्रेस प्रवक्ता ने योजना के लिए अपर्याप्त बजटीय आवंटन किये जाने की भी बात कही। उन्होंने कहा कि कानून 125 दिनों का रोजगार सुनिश्चित करने का प्रावधान करता है, लेकिन 2019 से 2024 के बीच लाभार्थियों को औसतन 42 दिनों से भी कम ही रोजगार मिला है, जो काम के दिन बढ़ाने के वादे को भ्रामक बनाता है। श्री दत्त ने राज्यों की वित्तीय स्थिति की ओर भी ध्यान दिलाया। उन्होंने कहा कि जीएसटी ने राज्य आय कम कर दी है और ऋण बढ़ा दिया है। उन्होंने महाराष्ट्र के सात लाख करोड़ रुपये से अधिक के कर्ज का जिक्र किया और कहा कि राज्यों को रोजगार योजनाओं के लिए फंड जुटाने में मुश्किल हो सकती है। इससे ग्रामीण युवाओं का शहरों की ओर पलायन बढ़ सकता है।
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