भुवनेश्वर , अक्टूबर 13 -- मैट्रिआर्क और इंडियन नेशनल ट्रस्ट फॉर आर्ट एंड कल्चरल हेरिटेज (इंटैक) की रिपोर्ट में यह जथ्य सामने आया है कि 1936 में ओडिशा के आंदोलन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले परलाखेमुंडी महल का ऐतिहासिक दरबार हॉल पर्यावरणीय क्षरण और उपेक्षा के कारण गंभीर खतरों का सामना कर रहा है।
संरक्षण वास्तुकार अनीसा स्वैन द्वारा तैयार की गई इस विस्तृत रिपोर्ट में दरबार हॉल को ओडिया अस्मिता का प्रतीक बताते हुए सरकार से आग्रह किया गया है कि इसे राज्य द्वारा संरक्षण देने के साथ-साथ मान्यता और सम्मान दिया जाना चाहिए।
श्री स्वैन ने इस भव्य हॉल की ऐतिहासिकता का जिक्र करते हुए बताया कि ओडिशा को राज्य का दर्जा दिलाए जाने के संघर्ष के दौरान यह हॉल राजनीतिक, प्रशासनिक और सांस्कृतिक गतिविधियों का केंद्र रहा था। इस हॉल ने इस क्षेत्र के भाग्य को आकार देने में एक निर्णायक भूमिका निभाई है। उन्होंने कहा कि इसी हॉल में परला महाराजा ने ब्रिटिश अधिकारियों और क्षेत्रीय राष्ट्रवादी नेताओं के साथ विचार-विमर्श किया था और 1936 में एक अलग उड़िया-भाषी प्रांत के निर्माण की नींव रखी थी।
दरबार हॉल वास्तुकला की दृष्टि से इंडो-यूरोपीय शिल्पकला का एक उत्कृष्ट मिश्रण प्रस्तुत करता है, जिसमें अलंकृत दीवारें, भव्य द्वार और जटिल नक्काशी से सजी खिड़कियाँ हैं। दीवारें भित्तिचित्रों और पुष्प आकृतियों से सुसज्जित हैं जो स्थानीय कलात्मकता और यूरोपीय प्रभाव दोनों को दर्शाती हैं। प्रत्येक पैनल अपने डिज़ाइन में विशिष्ट है। शाही चित्रों, पौराणिक दृश्यों और शिकार अभियानों को दर्शाने वाले बड़े तैलचित्र इसकी शाही भव्यता में चार चाँद लगाते हैं। रिपोर्ट में हालांकि चेतावनी दी गई है कि यह संरचना अब उपेक्षा और पर्यावरणीय क्षरण का दंश झेल रही है।
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