नैनीताल , अक्टूबर 13 -- उत्तराखंड में सरकारी नौकरी में अधिवास के आधार पर मिलने वाले 30 प्रतिशत महिला आरक्षण के मामले में उच्च न्यायालय तीन नवंबर को सुनवाई करेगा।
इस मामले को उत्तर प्रदेश के सेवानिवृत्त शिक्षक सत्यदेव त्यागी समेत छह अन्य लोगों की ओर से अलग-अलग याचिकाओं के माध्यम से चुनौती दी गई है।
याचिकाकर्ताओं की ओर से उत्तराखंड सरकार द्वारा अधिनियमित उत्तराखंड लोक सेवा (महिलाओं के लिए क्षैतिज आरक्षण) अधिनियम, 2022 को चुनौती दी गई है। साथ ही राज्य की लोक सेवाओं में उत्तराखंड की महिलाओं को अधिवास के आधार पर मिलने वाले 30 प्रतिशत आरक्षण को भी चुनौती दी गई है।
याचिकाकर्ता की ओर से कहा गया है कि यह अधिनियम संविधान के अनुच्छेद 16(3) के प्रावधानों के विरुद्ध है तथा उत्तराखंड विधानसभा इस अधिनियम को पारित करने के लिए सक्षम नहीं है। उन्हाेंने कहा कि अधिवास के आधार पर किसी भी रोजगार में आरक्षण केवल भारत की संसद द्वारा ही प्रदान किया जा सकता है, राज्य विधानमंडल द्वारा नहीं। इस प्रकार का आरक्षण प्रदान करना राज्य का संकीर्ण दृष्टिकोण है। इस प्रकार क्षेत्र और अधिवास-आधारित आरक्षण राष्ट्र के लिए उचित नहीं है। यह भी कहा गया कि राज्य को महिलाओं के लिए आरक्षण प्रदान करने की अनुमति है लेकिन वह इसे उत्तराखंड की महिलाओं तक सीमित नहीं कर सकता। राज्य ने मनमाने ढंग से वर्ग के भीतर एक वर्ग बना दिया है, जिसकी भारत के संविधान के अनुच्छेद 16(3) के तहत अनुमति नहीं है।
इस मामले पर आज मुख्य न्यायाधीश जी. नरेंदर और न्यायमूर्ति सुभाष उपाध्याय की खंडपीठ में सुनवाई हुई। आज सुनवाई के दौरान महाधिवक्ता एसएन बाबुलकर ने तर्क दिया कि उत्तराखंड विधानसभा इस अधिनियम को पारित करने में सक्षम है। आरक्षण का आधार अधिवास नहीं है। अन्य राज्यों ने भी आरक्षण दिया है। तेलंगाना सरकार की ओर से मेडिकल कॉलेज में आरक्षण का प्रावधान किया गया है।
याचिकाकर्ताओं के अधिवक्ता डाॅ. कार्तिकेय हरि गुप्ता ने कहा कि यह गलत है और आने वाले समय में अन्य राज्य भी अपने यहां क्षैतिज आरक्षण लागू करेंगे। अदालत ने अंत में इस मामले में तीन नवम्बर की तिथि तय कर दी।
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