श्रीनगर , अक्टूबर 13 -- जम्मू कश्मीर और लद्दाख के उच्च न्यायालय ने पुस्तक प्रतिबंध को चुनौती देने वाली चार याचिकाओं पर सोमवार को राज्य के गृह विभाग को नोटिस जारी किया, लेकिन इस मामले में जनहित याचिका पर विचार करने से साफ इनकार कर दिया।

यह जनहित याचिका माकपा नेता मोहम्मद यूसुफ तारिगामी ने दायर की थी, जिसमें कहा गया था कि यह कदम 'जनहित' में नहीं है।

मुख्य न्यायाधीश अरुण पल्ली, न्यायमूर्ति रजनीश ओसवाल और न्यायमूर्ति शहजाद अज़ीम की तीन-न्यायाधीशों की विशेष पीठ ने पांच अगस्त को राज्य सरकार द्वारा जारी उस अधिसूचना को चुनौती देने वाली चार याचिकाओं पर नोटिस जारी किये जिसके तहत 25 पुस्तकों पर झूठी विचारधारा और अलगाववाद को बढ़ावा देने का आरोप लगाते हुए उन्हें जब्त कर लिया गया था।

पत्रकार डेविड देवदास, सेवानिवृत्त एयर वाइस मार्शल कपिल काक और अन्य, अधिवक्ता शाकिर शब्बीर और स्वास्तिक सिंह द्वारा अलग-अलग दायर इन याचिकाओं में गृह विभाग की उस अधिसूचना को चुनौती दी गयी थी जिसमें अपराध प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) की धारा 95 के तहत पुस्तकों को जब्त करने का आदेश जारी किया गया थाश्री काक की याचिका में गृह विभाग की अधिसूचना को एक मनमाना और यांत्रिक कवायद बताया गया है जिसने अकादमकि जांच का अपराधीकरण कर दिया है। याचिका में कहा गया है कि सरकार यह बताने में विफल रही है कि इन प्रकाशनों में कई अकदमिक या ऐतिहासिक कृतियाँ शामिल हैं और ये किस प्रकार से संप्रभुता और एकता के लिए खतरा बन सकती हैं।

न्यायालय की पीठ ने अंतिम सुनवायी और बहस के लिये चार दिसंबर की तारीख तय की है।

जम्मू-कश्मीर गृह विभाग ने पांच अगस्त को कश्मीर पर 25 पुस्तकों के प्रकाशन पर प्रतिबंध लगा दिया था जिनमें अरुंधति रॉय और ए.जी नूरानी जैसे लेखकों की पुस्तकें भी शामिल थीं। गृह विभाग का कहना था कि ये पुस्तकें"अलगाववाद" का प्रचार करती हैं।

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