नयी दिल्ली , दिसंबर 22 -- उच्चतम न्यायालय ने उत्तराखंड में वन भूमि पर बड़े पैमाने पर हो रहे अतिक्रमण और अवैध कब्जे के आरोपों को लेकर सोमवार को स्वतः संज्ञान लेते हुए कार्यवाही शुरू की।
पहाड़ी जिलों में संरक्षित वन भूमि पर अनधिकृत कब्जे से जुड़ा यह मामला अदालत की अवकाशकालीन पीठ के समक्ष आया, जिसमें मुख्य न्यायाधीश सूर्य कांत और न्यायमूर्ति जॉयमाल्य बागची शामिल थे।
पीठ ने आरोपों को गंभीरता से लेते हुए वन भूमि पर सभी निर्माण कार्यों पर तत्काल रोक लगा दी। साथ ही वन विभाग को निर्देश दिया कि जहां पहले से रिहायशी मकान मौजूद नहीं हैं, वहां की सारी खाली वन भूमि अपने कब्जे में ली जाए।
मुख्य न्यायाधीश ने सुनवाई के दौरान राज्य सरकार की कथित निष्क्रियता पर चिंता जताई और कहा कि स्थिति की गंभीरता को देखते हुए न्यायिक हस्तक्षेप जरूरी हो गया है।
मुख्य न्यायाधीश ने कहा, "हमें यह देखकर हैरानी हो रही है कि उत्तराखंड राज्य और उसके अधिकारी आंखों के सामने वन भूमि पर कब्जा होते देख भी मूक दर्शक बने हुए हैं। इसलिए हम इस मामले में स्वतः संज्ञान ले रहे हैं।"न्यायालय ने उत्तराखंड के मुख्य सचिव और प्रधान मुख्य वन संरक्षक को निर्देश दिया कि वे एक तथ्य-जांच समिति गठित करें, जो जमीनी हालात का आकलन कर अतिक्रमण की सीमा और राज्य प्रशासन की कार्रवाई पर एक विस्तृत रिपोर्ट पेश करे।
स्थिति में कोई और बदलाव न हो, इसके लिए पीठ ने निजी पक्षों को वन भूमि पर किसी भी प्रकार के तीसरे पक्ष के अधिकार बनाने से रोक दिया और स्पष्ट किया कि अगले आदेश तक कोई निर्माण नहीं होगा।
अदालत ने दोहराया कि रिहायशी मकानों को छोड़कर सारी खाली वन भूमि वन विभाग के कब्जे में ली जाएगी।
इस मामले की अगली सुनवाई पांच जनवरी को न्यायालय के पुनः खुलने के बाद होगी। न्यायालय में 19 दिसंबर से 5 जनवरी तक सर्दियों की छुट्टियां हैं।
हिंदी हिन्दुस्तान की स्वीकृति से एचटीडीएस कॉन्टेंट सर्विसेज़ द्वारा प्रकाशित