नयी दिल्ली , दिसंबर 01 -- उच्चतम न्यायालय ने सोमवार को अभिनेता विजय की पार्टी तमिलगा वेत्री कषगम (टीवीके) की ओर से तमिलनाडु में मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण (एसआईआर) को चुनौती देने वाली दायर याचिका पर सुनवाई के लिए 4 दिसंबर की तारीख तय की।

मुख्य न्यायाधीश सूर्यकांत और न्यायमूर्ति जॉयमाल्य बागची की पीठ ने टीवीके की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता गोपाल शंकरनारायणन द्वारा बूथ स्तर के अधिकारियों पर कथित रूप से डाले जा रहे दबाव के बारे में उठाए गए चिंताओं को संज्ञान में लिया।

श्री शंकरनारायणन ने कहा कि बीएलओ को कठोर लक्ष्य पूरे करने के लिए मजबूर किया जा रहा था और उन्हें जन प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1950 की धारा 32 के तहत कार्रवाई की धमकी दी गई थी, जिसमें आधिकारिक कर्तव्य के उल्लंघन के लिए तीन महीने तक की कैद का प्रावधान है। उन्होंने यह भी दावा किया कि देश भर में 21 बीएलओ की आत्महत्याएँ एसआईआर से संबंधित काम के कारण हुए तनाव से जुड़ी हुई हैं।

याचिका के अनुसार, एसआईआर संविधान के अनुच्छेद 14, 19, 21, 325 और 326 का उल्लंघन करता है और यह लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1950 की धारा 21 और 23 के विपरीत मतदाता सूची की नए सिरे से तैयारी के बराबर है।

याचिका में कहा गया है कि एसआईआर बिना कारणों के शुरू किया गया था और बाढ़ के संभावित मौसम के दौरान इसको शुरू करना सरकारी अधिकारियों और बीएलओ पर बोझ डालेगा। इन अधिकारियों की जरूरत राहत कार्यों के लिए भी पड़ सकती है।

टीवीके ने याचिका में तर्क दिया है कि बीएलओ के पास पिछली पुनरीक्षण सूची और पर्याप्त गणना फॉर्म जैसी आवश्यक सामग्री की कमी है, जिससे प्रक्रिया मनमानी और जल्दबाजी में हो रही है।

याचिका में कई चिंताओं पर प्रकाश डाला गया है कि आवश्यक दस्तावेजों को मनमाने ढ़ंग से तय किया गया है और केवल 13 माध्यमिक दस्तावेज़ स्वीकार किया गया है, जबकि व्यापक रूप से उपलब्ध दस्तावेज़ जैसे चुनाव फोटो पहचान पत्र (ईपीआईसी), राशन कार्ड और मनरेगा कार्ड को बाहर रखा गया है।

याचिका में कमजोर वर्गों पर पड़ने वाले प्रभाव को लेकर मुद्दे उठाये गये हैं, जैसे आर्थिक और सामाजिक रूप से कमजोर नागरिकों के लिए जन्म विवरण के दस्तावेजी प्रमाण उपलब्ध नहीं हो सकते हैं। चुनावी पंजीकरण अधिकारियों (ईआरओ) को मिली असीमित शक्तियों पर भी सवाल उठाया गया है। ईआरओ सीमित दस्तावेज़ों या व्यक्तिपरक संदेहों के आधार पर नागरिकता पर सवाल उठा सकते हैं।

टीवीके ने यह भी चिंता जाहिर की है कि एसआईआर की घोषणा से पहले न तो मतदाताओं और न ही राजनीतिक दलों को सूचित किया गया था। लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम और निर्वाचकों के पंजीकरण नियम के विपरीत, गणना फॉर्म जमा न करने पर मतदाता सूची से नाम हटाया जा सकता है।

उल्लेखनीय है कि एसआईआर को द्रविड़ मुनेत्र कषगम (द्रमुक), मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी के विधायक के. सेल्वपेरुंथगई और सांसद थोल. थिरुमावलवन द्वारा भी चुनौती दी जा रही है।

डीएमके ने तर्क दिया है कि हाल ही में एक विशेष संक्षिप्त पुनरीक्षण पूरा हुआ था और 6 जनवरी, 2025 को एक संशोधित मतदाता सूची प्रकाशित की गयी थी, जिससे एक नए एसआईआर की आवश्यकता नहीं थी। पार्टी का तर्क है कि नए एसआईआर दिशानिर्देश नागरिकता सत्यापन की शर्तें लगाते हैं, विशेष रूप से उन लोगों के लिए जो 2003 के मतदाता सूची में अनुपस्थित हैं।

गौरतलब है कि इसके विपरीत, ऑल इंडिया अन्ना द्रविड़ मुन्नेत्र कषगम (एआईएडीएमके) ने एसआईआर का समर्थन करते हुए इसे साफ और धोखाधड़ी रहित मतदाता सूची सुनिश्चित करने के लिए आवश्यक बताया है।

केरल, पश्चिम बंगाल और पुडुचेरी से एसआईआर प्रक्रिया को चुनौती देने वाली इसी तरह की याचिकाएँ उच्चतम न्यायालय के समक्ष लंबित हैं। ये मामले न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति जॉयमाल्य बागची की पीठ के समक्ष सूचीबद्ध हैं।

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