मेलबर्न , अक्टूबर 03 -- आस्ट्रेलिया के वैज्ञानिकों ने खाद्य अपशिष्ट शर्करा से प्राकृतिक प्लास्टिक फिल्म्स विकसित की है, जो पेट्रोलियम आधारित पैकेजिंग का स्थान ले सकती हैं तथा खाद्य और कृषि उपयोगों के लिये खाद योग्य विकल्प बन सकती हैं।

आस्ट्रेलिया के मोनाश विश्वविद्यालय(एमओएन) ने शुक्रवार को इस बारे में जानकारी देते हुये कहा कि खाद्य अपशिष्ट शर्करा को पॉलीहाइड्रॉक्सीएल्केनोएट्स (पीएचए) बायोपॉलिमर में बदलकर एक नये प्रकार के बायोडिग्रेडेबल प्लास्टिक की क्षमता को परखा गया है।

एमओएन के रासायनिक एवं जैविक इंजीनियरिंग विभाग के एडवर्ड एटनबरो ने कहा कि यह शोध दिखाता है कि खाद्य अपशिष्ट को कैसे टिकाऊ, कम्पोस्ट योग्य बहुत ही बारीक फिल्मों में परिवर्तित किया जा सकता है, जिनमें समायोजन वाले गुण होते हैं।

बयान में कहा गया कि विभिन्न जीवाणु प्रजातियों का चयन करके और उनके पॉलिमरों को मिश्रित करके, शोधकर्ताओं ने ऐसी फिल्में तैयार की हैं जो पारंपरिक प्लास्टिक की तरह काम करती हैं और उन्हें अन्य आकृतियों या ठोस पदार्थों में ढाला जा सकता है।

इस समय वैश्विक प्लास्टिक उत्पादन हर वर्ष 40 करोड़ टन से अधिक है, जिसमें से अधिकांश एकल-उपयोग वाले उत्पाद है। इसलिए यह अध्ययन तापमान-संवेदनशील पैकेजिंग, चिकित्सा फिल्मों और अन्य उत्पादों के लिए बायोप्लास्टिक्स को डिजाइन करने के लिए एक रूपरेखा प्रदान करता है, जो एकल-उपयोग प्लास्टिक कचरे की वैश्विक चुनौती का समाधान करता है।

ब्रिटिश जर्नल माइक्रोबियल सेल फैक्ट्रीज़ में प्रकाशित अध्ययन के अनुसार शोधकर्ताओं ने मिट्टी में रहने वाले जीवाणुओं दो क्यूप्रियाविडस नेकेटर और स्यूडोमोनास पुटिडा को शर्करा, लवण, पोषक तत्वों और सूक्ष्म तत्वों के सही मिश्रण वाला सावधानीपूर्वक संतुलित "आहार" खिलाया।

जब सूक्ष्मजीवों ने अपनी कोशिकाओं के अंदर प्लास्टिक का निर्माण कर लिया तो शोधकर्ताओं ने उसे निकालकर लगभग 20 माइक्रोन बहुत ही पतली फिल्म में ढाला तथा उसके लचीलेपन, मजबूती और पिघलने का परीक्षण किया।

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