तिरुवनंतपुरम , नवंबर 28 -- राजीव गांधी जैव प्रौद्योगिकी केंद्र को उसकी वैज्ञानिक विशेषज्ञता के लिए बड़ी मान्यता देते हुए, राष्ट्रीय 'वन हेल्थ मिशन' पहल के तहत मेटाजीनोमिक सिंड्रोमिक सर्विलांस प्रोग्राम की अगली पीढ़ी की सीक्वेंसिंग के चार राष्ट्रीय केन्द्रों में से एक के रूप में चुना गया है।

इस प्रोग्राम का उद्देश्य बिना निदान वाली एक्यूट फेब्राइल बीमारी (तीव्र बुखार), एन्सेफलाइटिस, डायरिया और श्वसन संक्रमण जैसी लंबे समय से चली आ रही चुनौतियों का समाधान करना है। यह कार्यक्रम नैदानिक सिंड्रोमिक स्क्रीनिंग को पूरी तरह निष्पक्ष रूप से मेटाजीनोमिक सीक्वेंसिंग के साथ जोड़ता है, जिससे ज्ञात, दुर्लभ और नए रोगज़नक़ों का एक साथ पता लगाया जा सकेगा, जिन्हें पारंपरिक निदान तरीकों से अक्सर नजरअंदाज कर दिया जाता है।

यह पहल सेंटर फॉर सेलुलर एंड मॉलिक्यूलर बायोलॉजी (सीसीएमबी), टाटा इंस्टीट्यूट फॉर जेनेटिक्स एंड सोसाइटी (टीआईजीएस), गुजरात बायोटेक्नोलॉजी रिसर्च सेंटर (जीबीआरसी), आईसीएमआर-एनआईई चेन्नई और आईसीएमआर मुख्यालय के सहयोग से चलाई जाएगी।

आरजीसीबी के निदेशक (अतिरिक्त प्रभार) डॉ. टी. आर. संतोष कुमार ने कहा कि एक्यूट फेब्राइल इलनेस (एएफआई) के लिए निर्धारित एनजीएस हब के रूप में आरजीसीबी अपनी उन्नत सीक्वेंसिंग और डेटा विश्लेषण क्षमताओं के माध्यम से महत्वपूर्ण योगदान देगा, जो संस्थान की बायोसेफ्टी लेवल-3 (बीएसएल -3) सुविधा में उपलब्ध हैं।

डॉ. कुमार ने कहा कि वायरल जीनोमिक्स, होस्ट-पैथोजेन इंटरैक्शन और हाई-थ्रूपुट सीक्वेंसिंग में अपनी विशेषज्ञता का उपयोग करते हुए, आरजीसीबी देश भर की राष्ट्रीय सर्विलांस साइट्स से आने वाले हजारों नमूनों का विश्लेषण करेगा, ताकि भारत में सबसे आम लेकिन अनसुलझी क्लिनिकल स्थितियों के पीछे छिपे एटिऑलॉजिकल एजेंट्स की पहचान की जा सके।

यह देशव्यापी सहयोगात्मक प्रयास संक्रामक रोगों के बारे में भारत की समझ को पूरी तरह बदल देगा, महामारी संबंधी जानकारी को सुदृढ़ करेगा और भारत की विशिष्ट रोगजनक विविधता के अनुरूप स्वदेशी डायग्नोस्टिक उपकरणों के विकास में मदद करेगा।

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