नयी दिल्ली/ जयपुर , नवम्बर 23 -- राजस्थान विधानसभा अध्यक्ष एवं विश्व सिन्धी हिन्दू फाउंडेशन ऑफ एसोसिएशन के संरक्षक वासुदेव देवनानी ने सिन्धी समाज से आह्वान किया है कि वे प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के 2047 तक विकसित भारत के सपने को साकार करने के लिए अपना पर्याप्त योगदान देकर समाज की गौरवशाली परम्परा को आगे बढ़ाएं।

श्री देवनानी रविवार को नयी दिल्ली के विज्ञान भवन में "सशक्त समाज, समृद्ध भारत" विषय पर आयोजित अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन को संबोधित कर रहे थे। इस मौके पर भारत सहित 35 देशों के प्रतिनिधिगण उपस्थित थे। उन्होंने कहा कि आधुनिक भारत के विकास में सिंधी समाज का योगदान किसी से भी कम नहीं रहा है। यही कारण है कि अब देश के कुल आयकर देने वालों में सिंधियों का योगदान 24 प्रतिशत है।

उन्होंने कहा कि सिंध संस्कृति विश्व की सबसे प्राचीनतम संस्कृति है और सिन्धी भाषा भी विश्व की सबसे समृद्धशाली ऐसी भाषा है जिसकी लिपि में 52 अक्षर हैं। हमें सिंध और सिन्धी समाज और भाषा पर गर्व होना चाहिए क्योंकि वर्तमान में भारत ही नहीं विश्व के हर कौने में सिन्धी समाज बसा हुआ है। यहां तक कि बारबाडोस जैसे सुदूर क्षेत्र में भी सिन्धी समाज के लोग बसे हुए हैं।

श्री देवनानी ने कहा कि सिन्धी विभाजन की विभीषिका में अपनी करोड़ों, अरबों की संपतियों को छोड़कर इसलिए भारत आए थे क्योंकि उन्हें अपनी मातृ भूमि, जीवन मूल्यों और सनातन धर्म संस्कृति से अथाह प्यार था। सिन्धी समाज के लोगों ने अपना वतन और सब कुछ त्यागने के बाद भारत आकर अपने पुरुषार्थ से अपने आपको पुनः खड़ा किया और अब पुरुषार्थ से परमार्थी बन गए हैं।

इस अवसर पर उन्होंने श्री मोदी का हर वर्ष 14 अगस्त को विभीषिका दिवस मनाने की घोषणा करने को लेकर आभार व्यक्त किया। उन्होंने सिन्धी समाज के लोगों से आग्रह किया कि वे अपने आपको सिंधु सभ्यता से जुड़े होने और सिन्धी समाज के होने पर गर्व करें और अपने घरों में सिन्धी भाषा में ही बातचीत करें क्योंकि किसी समाज के लिए उसकी अपनी भाषा ही उसकी अपनी पहचान होती है। उन्होंने सभी का आह्वान किया कि वे नई पीढ़ी को भी सिन्धी भाषा और संस्कृति से सुसंस्कृत करें ।

श्री देवनानी ने बताया कि अपने शिक्षा मन्त्री कार्यकाल के दौरान उन्होंने राजस्थान के अजमेर और कोटा में सिंधु शोध पीठ की स्थापना कराने के साथ ही महाराजा श्री दाहिर सेन, महान क्रांतिकारी हेमू कालानी के साथ ही सिन्धी संतों सन्त तेऊ राम,सन्त चंद्र भगवान,सन्त कंवर राम आदि की जीवनियों को स्कूली शिक्षा पाठ्यक्रम में शामिल कराया था।

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