(अजीत झा से)नयी दिल्ली , दिसंबर 21 -- भारतीय विमानन क्षेत्र के लिए साल 2025 बेहद चुनातीपूर्ण रहा - साल के पूर्वार्द्ध में जहां एयर इंडिया विमान हादसे ने पूरे देश को झकझोर दिया, वहीं अंतिम महीने में 'इंडिगो संकट' लाखों यात्रियों के लिए परेशानी का सबब बना और विमान सेवा कंपनियों के प्रति उनके विश्वास को कमजोर किया।
विमानन क्षेत्र के लिए मार्च तक सब कुछ काफी अच्छा चल रहा था। साल के पहले तीन महीने में यात्रियों की संख्या भी 10.35 प्रतिशत बढ़कर 4.32 करोड़ पर पहुंच गयी थी और उम्मीद की जा रही थी कि गर्मी की छुट्टियों के दौरान पहली बार यात्रियों की मासिक संख्या डेढ़ करोड़ के पार पहुंच जायेगी।
इसके बाद 22 अप्रैल को पहलगाम में आतंकवादी हमला हुआ और लोगों ने जम्मू-कश्मीर की टिकट रद्द करनी शुरू कर दी। फिर मई की शुरुआत में भारत ने पाकिस्तान और पाकिस्तान के कब्जे वाले जम्मू-कश्मीर में आतंकी ठिकानों पर हमले किये। इसके बाद सीमा पर संघर्ष शुरू हो गया। पाकिस्तान ने भारतीय एयरलाइंस के लिए और भारत ने पाकिस्तानी विमान सेवा कंपनियों के लिए अपने-अपने हवाई क्षेत्र में प्रवेश पर प्रतिबंध लगा दिये जो अब तक जारी हैं।
इसका असर भारतीय विमानन क्षेत्र पर पड़ना शुरू हो गया। कई मार्गों पर उड़ानें रद्द करनी पड़ीं और कई अंतर्राष्ट्रीय मार्गों पर घूमकर जाने से यात्रा का समय और एयरलाइंस की लागत बढ़ गयी। ऊपर से विमान ईंधन की कीमतों में इजाफे के कारण मुनाफा कमाने के लिए पहले से संघर्ष कर रही विमान सेवा कंपनियों की वित्तीय स्थिति और खराब हो गयी। मई में हवाई यात्रियों की संख्या में सालाना आधार पर महज 1.89 प्रतिशत की वृद्धि हुई जबकि माह-दर-माह लगातार दूसरी गिरावट दर्ज की गयी।
देश ने जून महीने में अपने विमानन इतिहास से सबसे बुरे हादसों में से एक का समाना किया। एयर इंडिया की उड़ान संख्या 171 ने गुजरात के अहमदाबाद हवाई अड्डे से 230 यात्रियों और चालक दल के 12 सदस्यों के साथ लंदन के गैट्विक हवाई अड्डे के लिए उड़ान भरी थी। टेकऑफ के तुरंत बाद विमान ऊंचाई हासिल करने में असफल रहा और बी.जे. मेडिकल कॉलेज के होस्टल से टकरा गया और उसमें आग लग गयी। देखते ही देखते विमान आग के गोले में तबदील हो गया।
चमत्कार के रूप में विश्वासकुमार रमेश नामक एक यात्री मामूली जख्मों के साथ खुद चलता हुआ मलबे से बाहर निकलने में कामयाब रहा। विमान में सवार अन्य सभी 241 लोगों की मौत हो गयी। जमीन पर मौजूद 19 लोगों की मौत हो गयी जबकि 67 लोग गंभीर रूप से घायल हुए। इस हादसे ने पूरे देश को झकझोर कर रख दिया।
एयर इंडिया हादसे की प्राथमिक जांच रिपोर्ट में पायलट की गलती को इसकी मुख्य वजह बताया गया है। आगे की जांच जारी है और अंतिम रिपोर्ट का इंतजार है।
इसके बाद, हवाई यात्रियों की संख्या भी लगातार घटती गयी। नागर विमानन महानिदेशालय (डीजीसीए) द्वारा अक्टूबर तक के प्रकाशित आंकड़ों के अनुसार, साल के पहले 10 महीने में हवाई यात्रियों की संख्या 3.97 प्रतिशत की दर से बढ़कर 13.74 करोड़ रही है। यह कोरोना-काल के बाद सबसे सुस्त वृद्धि दर है।
इस बीच नये हवाई अड्डे, नये टर्मिनल और नयी उड़ानें जुड़ती रहीं। नवी मुंबई में एक बड़े एयरपोर्ट का और मध्य प्रदेश के सतना तथा दतिया में छोटे हवाई अड्डों का उद्घाटन हुआ। पटना और गुवाहाटी हवाई अड्डों को नये टर्मिनल भवन मिले। बिहार के पूर्णिया से उड़ान शुरू हुई। नवी मुंबई एयरपोर्ट से 25 दिसंबर से व्यावसायिक उड़ानें शुरू होंगी।
डीजीसीए ने 01 नवंबर से फ्लाइट ड्यूटी के नियमों में बदलाव का दूसरा चरण लागू किया। इसके तहत पायलटों के लिए हर सप्ताह अवकाश के अलावा 48 घंटे का आराम जरूरी कर दिया गया। नाइट ड्यूटी की परिभाषा बदलकर रात 12 बजे से सुबह छह बजे तक की गयी और एक नाइट ड्यूटी में अधिकतम दो लैंडिंग की सीमा तय की गयी। इन शर्तों को पूरा करने के लिए पहले से अधिक पायलट की जरूरत थी।
इस कारण घरेलू यात्रियों के मामले में 60 प्रतिशत से अधिक की हिस्सेदारी रखने वाली इंडिगो ने नवंबर में 1,200 के अधिक उड़ानें रद्द कीं और उसकी उड़ानों में देरी के मामले भी बढ़ते गये। दिसंबर आते-आते उड़ानों में देरी बहुत अधिक बढ़ गयी और 03 दिसंबर से बड़ी संख्या में उड़ानें रद्द हुईं।
सबसे बुरा हाल 05 दिसंबर को रहा जब एयरलाइंस ने 1,500 से अधिक उड़ानें रद्द कीं। दिसंबर के पूरे पहले सप्ताह में इंडिगो ने हजारों की संख्या में उड़ानें रद्द कीं जिससे लाखों लोगों को परेशानी का सामना करना पड़ा। कई लोग अपने जरूरी काम के लिए नहीं पहुंच सके। विभिन्न हवाई अड्डों पर फंसे यात्रियों का गुस्सा भी फूटा।
इंडिगो ने इस पूरे संकट के लिए तकनीकी कारणों के साथ नये नियमों को प्रमुख रूप से जिम्मेदार ठहराया है। सरकार ने मामले की जांच के लिए एक उच्च स्तरीय समिति गठित की है। साथ ही संसद की एक स्थायी समिति ने भी इंडिगो, भारतीय विमानपत्तन प्राधिकरण और डीजीसीए के अधिकारियों से पूछताछ की है।
कुल मिलाकर यह साल भारतीय विमानन क्षेत्र के लिए भुला देने लायक रहा। कुछ उपलब्धियां भी रहीं, लेकिन बड़े संकट अधिक हावी रहे।
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