रायबरेली , दिसंबर 01 -- उत्तर प्रदेश के रायबरेली के लालगंज स्थित आधुनिक रेल डिब्बा कारखाने (एमसीएफ) के महाप्रबंधक की दो महत्वपूर्ण पुस्तकों का लोकार्पण कोलकाता में आयोजित 'रेल उत्सव' के दौरान किया गया। यह कार्यक्रम पूर्वी रेलवे के इतिहास और आज़ादी की लड़ाई में रेलों की भूमिका पर केंद्रित रहा।
अरेडिका के प्रवक्ता अनिल कुमार श्रीवास्तव ने सोमवार को बताया कि कोलकाता के यूनिवर्सिटी इंस्टीट्यूट में रेल एंथूज़ियास्ट्स सोसाइटी द्वारा आयोजित इस उत्सव में महाप्रबंधक प्रशांत कुमार मिश्र ने भारतीय रेलवे के इतिहास से जुड़ी अपनी दो शोधपरक पुस्तकों- "द हाईवे ऑफ हिंदोस्तान: द ईस्ट इंडियन रेलवे (1841-1871)" और "ट्रैक्स ऑफ नेसेसिटी: रेलवे, फैमिन एंड एम्पायर इन डेक्कन"-का औपचारिक विमोचन किया। कार्यक्रम में उन्होंने ईस्ट इंडियन रेलवे (ईआईआर) की विरासत, उसकी चुनौतियों और सामाजिक-आर्थिक असर पर विस्तार से प्रस्तुति भी दी।
"द हाईवे ऑफ हिंदोस्तान" पुस्तक में ईस्ट इंडियन रेलवे के शुरुआती तीस वर्षों का विस्तृत और प्रमाणिक इतिहास दर्ज है, जो प्राथमिक स्रोतों पर आधारित है। इसमें बताया गया है कि कैसे यह रेल परियोजना ब्रिटिश शासन के औपनिवेशिक उद्देश्यों से निकलकर भारत में बड़े सामाजिक और आर्थिक बदलाव का कारण बनी। पुस्तक में उस दौर के इंजीनियरिंग कार्यों, राजनीतिक परिस्थितियों, श्रमिकों के जीवन और सुधारवादी प्रयासों को भी प्रमुखता से रेखांकित किया गया है।
दूसरी पुस्तक "ट्रैक्स ऑफ नेसेसिटी" सदर्न मराठा रेलवे और वेस्ट ऑफ इंडिया पुर्तगाली गारंटीड रेलवे के इतिहास पर आधारित है। इसमें बताया गया है कि कैसे एसएमआर ने कठिन समय में गरीब और हाशिये पर खड़ी आबादी के लिए जीवनरेखा का काम किया तथा 'फूड फॉर वर्क' जैसे प्रयासों को आगे बढ़ाया। वहीं डब्लूआईपीजीआर ने ब्रिटिश भारत को गोवा से जोड़कर धारवाड़ के कपास क्षेत्र को मार्मुगाओ पोर्ट से जोड़ने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। इसमें इन दोनों नेटवर्कों के निर्माण से जुड़े राजनीतिक विचार-विमर्श, इंजीनियरों की मेहनत और निवेशकों की दूरदर्शिता का भी वर्णन है।
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