जयपुर , दिसंबर 22 -- राजस्थान के पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने केंद्र सरकार द्वारा अरावली की परिभाषा बदलने और केंद्रीय मंत्री भूपेन्द्र यादव के दावे ''अरावली के केवल 0.19 प्रतिशत हिस्से पर ही खनन हो सकता है" को पूरी तरह भ्रामक और तथ्यों से परे बताया है।

श्री गहलोत ने सोमवार को अपने बयान में वर्ष 2025 में केन्द्र एवं राज्य सरकार द्वारा सरिस्का के संरक्षित क्षेत्र में बदलाव के प्रयास को लेकर उनकी मंशा पर भी सवाल उठाया। उन्होंने आरोप लगाते हुए कहा कि भारतीय जनता पार्टी जनता को आंकड़ों में उलझाकर उन्हें बरगलाने का प्रयास कर रही है। अरावली की '100 मीटर' वाली नई परिभाषा को अकेले नहीं बल्कि दो अन्य बड़े फैसलों के साथ जोड़कर देखा जाना चाहिए, जो यह साबित करते हैं कि यह पर्यावरण संरक्षण नहीं बल्कि संस्थाओं पर कब्जा कर अरावली को खनन माफिया को देने की तैयारी है।

उन्होंने कहा कि केंद्र सरकार ने पांच सितंबर 2023 को एक नोटिफिकेशन जारी कर 2002 में पर्यावरण संरक्षण के लिए बनी उच्चत्तम न्यायालय की निगरानी वाली केंद्रीय अधिकार प्राप्त समिति (सीईसी) को एक सुनियोजित साजिश के तहत कमजोर कर उसे पर्यावरण मंत्रालय के अधीन कर दिया है। वर्ष 2002 में उच्चत्तम न्यायालय द्वारा गठित यह 'तदर्थ' कमिटी अब सरकार के नोटिफिकेशन से 'स्थायी' सरकारी कमिटी बन गई है। पहले सीईसी के सदस्य उच्चत्तम न्यायालय की मंजूरी से नियुक्त होते थे लेकिन इस नोटिफिकेशन के बाद सदस्यों को चुनने का पूरा अधिकार केंद्र सरकार ने अपने हाथ में ले लिया जिससे सीईसी केन्द्र सरकार के इशारे पर काम करने लगी।

श्री गहलोत ने कहा कि यह वही सीईसी है जिसकी निष्पक्ष रिपोर्ट के आधार पर पांच सितंबर 2011 को कर्नाटक की भाजपा सरकार के मंत्री जनार्दन रेड्डी को सीबीआई ने अवैध खनन के मामले में गिरफ्तार किया था। ठीक 12 साल बाद पांच सितंबर 2023 को केंद्र सरकार ने एक नोटिफिकेशन निकालकर पर्यावरण की रक्षा करने वाली उस 'सजग प्रहरी' का गला घोंट दिया और उसे अपनी 'कठपुतली' बना लिया। आज सीईसी का काम केवल सरकारी फैसलों पर मुहर लगाना रह गया है।

उन्होंने सवाल उठाया कि क्या सरकार को डर था कि अगर सीईसी स्वतंत्र रही, तो अरावली और सरिस्का जैसे संरक्षित क्षेत्रों में खनन की अनुमति नहीं मिलेगी। उन्होंने कहा कि श्री यादव का यह दावा कि इस नए फैसले के बाद भी अरावली के केवल 0.19 प्रतिशत हिस्से पर ही नई माइनिंग हो सकती है क्योंकि बाकी जगह टाइगर सेंचुरी, प्रोटेक्टेड एरिया आदि हैं, अपूर्ण है। संरक्षित क्षेत्र में खनन के प्रयास की सरकार की मंशा का सबसे बड़ा उदाहरण सरिस्का के क्रिटिकल टाइगर हैबिटेट (सीटीएच) में बदलाव का प्रयास है।

राजस्थान सरकार ने सरिस्का के लिए 881 वर्ग किलोमीटर इलाके को सीटीएच घोषित किया जिससे इस एरिया के एक किलोमीटर में खनन प्रतिबंधित है। इस वर्ष राजस्थान की भाजपा सरकार ने सरिस्का के सीटीएच की बाउंड्री बदलने का प्रस्ताव तैयार किया गया था। तर्क दिया गया कि 'जमीन की अदला-बदली' होगी लेकिन असल मकसद इस बदलाव से उन 50 से अधिक मार्बल और डोलोमाइट खदानों को जीवनदान मिलता सीटीएच से एक किलोमीटर की दूरी के कारण बंद हो गई थी। सीमा पीछे हटने से ये खदानें प्रतिबंधित क्षेत्र से बाहर आ जाती।

उन्होंने कहा कि पहले अरावली की परिभाषा बदली गई, अब सरिस्का के प्रोटेक्टेड एरिया की भी बाउंड्री बदलने की कोशिश हो रही है। उन्होंने कहा कि राजस्थान अपनी प्राकृतिक धरोहर के साथ यह खिलवाड़ बर्दाश्त नहीं करेगा।

हिंदी हिन्दुस्तान की स्वीकृति से एचटीडीएस कॉन्टेंट सर्विसेज़ द्वारा प्रकाशित