अलवर , दिसम्बर 23 -- केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्री भूपेंद्र यादव ने चार राज्यों में स्थित अरावली की पहाड़ियों को लेकर फैलाए जा रहे भ्रम की स्थिति को स्पष्ट करते हुए कहा है कि अरावली की पहाड़ियां पूरी तरह सुरक्षित हैं।
अलवर लोक सभा क्षेत्र से सांसद श्री यादव ने मंगलवार को आमजन के नाम लिखे पत्र 'अलवर के नाम एक पाती' भेजकर कहा कि अरावली पर फैलाये जा रहे भ्रम को दूर करने के लिए वह यह संदेश भेज रहे हैं। उन्होंने कहा कि अलवर भी अरावली पर्वतमाला का एक अभिन्न अंग है, जहां सरिस्का बाघ अभयारण्य और सिलीसेढ़ झील जैसी प्राकृतिक धरोहर विद्यमान हैं। उन्होंने क्षेत्र की जनता को आश्वस्त करते हुए कहा कि अरावली पूर्ण रूप से सुरक्षित है और उच्चतम न्यायालय का फ़ैसला अरावली के समेकित संरक्षण, अवैध खनन पर अंकुश लगाने, पर्यावरणीय मानकों के तहत संरक्षित क्षेत्रों के बाहर अनुमन्य खनन के माध्यम से स्थानीय लोगों को लाभ देने और क्षेत्र कें आर्थिक विकास के साथ साथ प्राकृतिक संरक्षण के दृष्टिगत किया गया है।
श्री यादव ने कहा कि अधिकतर लोगों ने न्यायालय के निर्णय का गहन अध्ययन नहीं किया है, जिसका फ़ायदा उठा कर कुछ लोग सच्चाई के विपरीत अरावली की परिभाषा और उसके भविष्य को लेकर मनगढ़ंत भ्रम फैलाने का कार्य कर रहे हैं। वास्तविकता यह है कि उच्चतम न्यायालय द्वारा दी गयी अरावली की परिभाषा, जिसमें स्थानीय ऊंचाई से 100 मीटर ऊपर उठने वाले भू-आकृतियों या पहाड़ी को अरावली माना जाएगा और राजस्थान में पहले से लागू परिभाषा जो तत्कालीन अशोक गहलोत के कार्यकाल में वर्ष 2002 में गठित समिति की रिपोर्ट के आधार पर बनायी गयी, के समरूप हैं। इसके आधार पर अब भी राजस्थान में ऐसी अरावली की पहाड़ियां जिसकी ऊंचाई 100 मीटर से ज़्यादा है, पर खनन प्रतिबंधित है। उन्होंने कहा कि यह भ्रम फैलाना कि उच्चतम न्यायालय द्वारा मानी गयी अरावली की परिभाषा एक नयी परिभाषा है, जिससे अरावली का नुक़सान होगा पूर्णतया तथ्यहीन है।
श्री यादव ने कहा कि यह भी जानना ज़रूरी है कि, ऐसी पहाड़ियां जो 100 मीटर से ऊपर हैं, न सिर्फ़ शिखर से भूतल तक अरावली पर्वत मानी जाएंगी, बल्कि उनके आधार क्षेत्र में आने वाली सभी भू आकृति भी अरावली पर्वत में सम्मिलित होंगी। साथ ही ऐसी दो 100 मीटर से ऊंची पहाड़ियां एक दूसरे से 500 मीटर तक की दूरी पर स्थित हैं, तो उन पहाड़ियों के बीच की सारी भूमि, जिसमे छोटी पहाड़ियाँ और अन्य भू आकृतियाँ भी शामिल होंगी, अरावली रेंज की परिभाषा में आयेंगी और सुरक्षित रहेंगी।
उन्होंने कहा कि यह भ्रम फैलाना कि अरावली की नयी परिभाषा से 90 फ़ीसदी पर्वत श्रेणियां नष्ट हो जायेंगी, निराधार है। वास्तव में इस परिभाषा से 90 फ़ीसदी से भी ज्यादा अरावली का क्षेत्र सुरक्षित रहेगा और जहां तक खनन का प्रश्न है, न्यायालय के निर्णय के अनुसार किसी अवैध खनन को नियमित नहीं किया जाना है। श्री यादव ने कहा कि किसी भी प्रकार का खनन संरक्षित क्षेत्र, वेटलैंड, क्षतिपूरक वृक्षारोपण, राष्ट्रीय उद्यान और अभयारण्यों के संवेदनशील क्षेत्रों में नहीं हो सकता।
उन्होंने कहा कि वैध खनन का निर्धारण भी भारतीय वानिकी अनुसंधान एवं शिक्षा परिषद (आईसीएफ़आरई) द्वारा सतत खनन के लिये प्रबंधन योजना के निरूपण के बाद निर्दिष्ट क्षेत्रों में ही संभव हो सकेगा, जिससे एक अनुमान के अनुसार एक प्रतिशत से भी कम (0.19 प्रतिशत) अरावली भूमि पर ही खनन संभव हो सकेगा। श्री यादव ने कहा कि हमारा अलवर अरावली पर्वतमाला का एक अभिन्न अंग है, जहां सरिस्का बाघ अभयारण्य और सिलीसेढ़ झील जैसी प्राकृतिक धरोहर विद्यमान हैं और इसके संरक्षण और विकास से कोई समझौता नहीं किया जा सकता।
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