लखनऊ , नवंबर 28 -- केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय की उपमहानिदेशक डॉ. उर्वशी बी. सिंह ने कहा कि गंभीर टीबी रोगियों की त्वरित पहचान, उन्हें उचित आंतरिक और बाह्य रोगी सेवाओं से जोड़ना और व्यक्तिगत देखभाल सुनिश्चित करना टीबी मृत्यु दर कम करने का प्रमुख लक्ष्य है। उन्होंने सभी राज्य क्षय रोग अधिकारियों (एसटीओ) को अपने-अपने राज्यों में सामुदायिक स्वास्थ्य अधिकारियों (सीएचओ) तक प्रशिक्षण पहुँचाने के निर्देश दिए। ताकि ग्रामीण स्तर पर भी इन दिशानिर्देशों का पालन हो सके।

क्षयरोग नियंत्रण कार्यक्रम को अधिक प्रभावी बनाने और टीबी मृत्यु दर में कमी लाने के उद्देश्य से लखनऊ में उत्तर भारत के सात राज्यों के वरिष्ठ अधिकारियों के लिए दो दिवसीय प्रशिक्षण का शुक्रवार को समापन हुआ। प्रशिक्षण में उत्तर प्रदेश के साथ हिमाचल प्रदेश, हरियाणा, चंडीगढ़, पंजाब, जम्मू-कश्मीर, लद्दाख और उत्तराखंड के अधिकारी सम्मिलित हुए। इस दौरान डिफ्रेंशिएटेड टीबी केयर और ड्रग रेजिस्टेंट टीबी (डीआर-टीबी) की नई गाइडलाइंस को ज़मीनी स्तर पर लागू करने की रणनीति पर विशेष जोर दिया गया।

केंद्रीय स्वास्थ्य विभाग की उपमहानिदेशक डॉ. उर्वशी बी. सिंह ने कहा कि विभेदित टीबी देखभाल तथा ड्रग रेजिस्टेंट टीबी, दोनों की नवीन गाइडलाइंस जारी हो चुकी हैं और इन्हें जिलास्तर पर प्रभावी रूप से लागू करना ज़रूरी है। उन्होंने अधिकारियों से कहा कि प्रत्येक मरीज की जोखिम प्रोफ़ाइल के आधार पर व्यक्तिगत देखभाल, पोषण सहायता और नियमित अनुवर्ती कार्रवाई अनिवार्य रूप से सुनिश्चित की जाए।

सेंट्रल टीबी डिवीजन के संयुक्त आयुक्त डॉ. संजय मट्टू ने कहा कि टीबी चैंपियंस को गतिविधि आधारित मानदेय दिए जाने का प्रस्ताव विचाराधीन है। साथ ही प्राइवेट सेक्टर में विभेदित टीबी केयर को बढ़ावा देने पर भी जोर दिया गया, जिससे मरीजों की शीघ्र पहचान और उपचार सुनिश्चित हो सके।

उत्तर प्रदेश के राज्य क्षय रोग अधिकारी डॉ. शैलेंद्र भटनागर ने कहा कि मेडिकल कॉलेजों में सक्रियता बढ़ाने, सीएचओ व परिवार-आधारित केयर गिवर्स के प्रशिक्षण की आवश्यकता है। उन्होंने बताया कि विभेदित टीबी देखभाल मॉडल का उद्देश्य उच्च जोखिम वाले मरीजों की पहचान कर उन्हें विशेष देखभाल प्रदान करना है, जिससे टीबी मृत्यु दर में प्रभावी कमी लाई जा सके।

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