आलोक शर्मा, सितम्बर 30 -- अग्नि के सात फेरे लेकर बाबुल के आंगन से बेबी साथ विदा हुई थी। छह साल तक पत्नी का धर्म निभाया। पति ने बेटे के साथ घर से निकाल दिया जिसके बाद पत्नी का दर्जा और सम्मान के लिए सामाजिक लड़ाई शुरू की। बात नहीं बनी तो वर्ष 2012 में कोर्ट से इंसाफ मांगने पहुंची। दबाव बना और परिवार बसने का फिर से भरोसा मिला तो अपील वापस ले ली, इसके बाद भी स्थिति नहीं बदली। वर्ष 2016 में फिर कोर्ट पहुंची। नौ साल की लंबी कानूनी लड़ाई के बाद कोर्ट ने बेबी को सुनील की पत्नी माना और पांच हजार रुपये मासिक मुकदमा दाखिल होने की तिथि से देने के आदेश दिए। अधिवक्ता सुनील तिवारी के मुताबिक सुनील ने दूसरी शादी पंजीकृत कराई थी। वर्तमान में वह दूसरी पत्नी और बच्चों के साथ रह रहा है। दस्तावेजों में भी उसकी दूसरी पत्नी का नाम ही दर्ज है।यह है मामला अधिवक्...