नई दिल्ली, सितम्बर 14 -- वयस्कों के बीच सहमति से बने रिश्ते के असफल होने पर हमेशा आपराधिक कानून का सहारा नहीं लिया जा सकता। दिल्ली हाईकोर्ट ने एक शादीशुदा पायलट के खिलाफ दर्ज कराई गई दुष्कर्म की एफआईआर को रद्द करते यह टिप्पणी की, जो दो साल से अधिक समय से एक महिला केबिन क्रू के साथ रिश्ते में था। इसके साथ ही, हाईकोर्ट ने यह भी कहा कि जजों को ''अपनी व्यक्तिगत नैतिकता नहीं थोपनी चाहिए'', भले ही एक पक्ष शादीशुदा ही क्यों न हो। कोर्ट ने जोर देकर कहा, "रिश्ते में खटास आने के बाद, किसी एक पक्ष को यह हक नहीं है कि वह इसे यौन उत्पीड़न के अपराध के रूप में पेश करे।'' द टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के अनुसार जस्टिस स्वर्णकांत शर्मा ने कहा, "इस कोर्ट का मानना ​​है कि कानून स्थिर नहीं रह सकता, इसे समाज के बदलते मानदंडों के साथ आगे बढ़ना और प्रगति करनी ह...