नई दिल्ली, सितम्बर 7 -- कबीर का एक प्रसिद्ध दोहा है, दुख में सुमिरन सब करे, सुख में करै न कोय। जो सुख में सुमिरन करे, तो दुख काहे को होय? दुख में परमात्मा का स्मरण सभी करते हैं, लेकिन सुख के समय भूल जाते हैं। सच्चाई यह है कि जो सुख में स्मरण करेगा, उस पर दुख आएगा ही नहीं। इसे सभी जानते हैं, लेकिन इस पर अमल कोई नहीं करता। वस्तुत: सुख में भगवान की याद नहीं आती। सुख में तो लोग बेहोश हो जाते हैं। पूरा श्रेय खुद लेते हैं कि हमने श्रम किया, होशियारी की, इसलिए हमें सफलता मिली। सारी प्रार्थनाएं दुख में या संकट में की जाती हैं। जब बाहर कोई सहारा नहीं मिलता, तब भगवान का सहारा याद आता है। अगर वास्तव में मंदिर में आने वाली भीड़ को देखें, तो पता चलेगा कि सारे कुछ न कुछ मांग लेकर आए हैं। कोई खुश नहीं है। सभी ढेर सारी समस्याओं से घिरे हैं। मगर वैज्ञानिक ...