बिजनौर, अगस्त 31 -- दशलक्षण पर्व के तीसरे दिन मंदिर में प्रवचन करते हुए मुरैना से आए पंडित हिमांशु जैन ने आर्जव धर्म पर कहा कि आर्जव आत्मा का स्वभाव होता है। सरलता का नाम ही आर्जव है। मायाचारी व्यक्ति भले ही छल कपट करके सफल बन कर दूसरों को ठक कर बेवकूफ बनाते चले, परंतु अगले जन्म में वह पशु-पक्षी बनकर कष्ट उठाता है। जैन दर्शन के अनुसार मनुष्य के सभी कार्य पूर्व के उदय से सिद्ध होते हैं। मायाचारिता से कोई कार्य सिद्ध नहीं होता। पंडित जी ने कहा कि छल करने वाला अपनी प्रामाणिकता को देता है। उसके व्यक्तित्व पर कोई भरोसा नहीं करता। उन्होंने कहा कि आजकल सरलता को मूर्ख समझ जाता है जो अशुभता का संकेत होता है। मन में छल भरा हो तो पूजा पाठ अभिषेक ध्यान से भी शांति नहीं मिलती। माया के कारण व्यक्ति मुखोटे बदल लेते हैं और असली मुखोटे को भूल जाते हैं। छल...