शामली, अगस्त 25 -- शहर के जैन धर्मशाला में रविवार को मुनि श्री विव्रत सागर ने अपने प्रवचनों के माध्यम से जग जाल और संसार का वास्तविक अर्थ विषय पर गहन प्रकाश डाला। उनका प्रवचन "जग जाल घमंड को देहू त्याग" पंक्ति पर केंद्रित रहा, जिसमें उन्होंने संसार के वास्तविक स्वरूप और उससे मुक्ति का मार्ग समझाया। मुनि श्री ने स्पष्ट किया कि तीर्थंकर भगवान द्वारा संसार का नाश करने का अर्थ इस भौतिक जगत का विनाश नहीं है। यदि ऐसा होता तो आज कोई जीव विद्यमान ही न रहता। उनका तात्पर्य अपने निजी संसार-जन्म-मरण के चक्र, राग-द्वेष और आठ कर्मों के बंधनों-के नाश से है। प्रवचन में बताया गया कि हमारा संसार परिवार, रिश्तेदार या व्यापार तक सीमित नहीं है। असली संसार हमारे कर्म हैं। आठ कर्म ही हमारे असली शत्रु हैं, जो हमें देव, मनुष्य, तिर्यंच और नारकी सहित 84 लाख योनियो...
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