जमुई, जुलाई 7 -- जमुई, निज संवाददाता इस्लाम का नया साल मुहर्रम से ही शुरू होता है। दस मुहर्रम को याजिदियों की फौज ने मैदाने करवला में हजरत इमाम हुसैन को शहीद कर दिया था। दुनिया की तारीख में ऐसी क्रूरता शायद ही कहीं दूसरी जगह नजर आती है जैसा कि यजीद की फौज ने मैदान-ए-करवला में मौत का तांडव खेला था। उक्त बातें महिसौड़ी मदरसा के मौलाना फारूक अशरफी ने कहीं। उन्होंने कहा कि मुहर्रम को भी खुशियों का त्यौहार समझे पटाखे फोड़ते है या फिर जश्न मनाते हैं। इस्लाम में इसकी कोई गुंजाइश नहीं है। मुहर्रम इमाम हुसैन की शहादत को याद करने के लिए मनाया जाता है। उन्होंने कहा कि नवमीं व दशमीं मुहर्रम को रोजा रखना चाहिए और ज्यादा से ज्यादा इबादत करना चाहिए। इस्लाम धर्म को लाने वाले हजरत मुहम्मद सल्लाह हो अलैहे वसल्लम की एकलौती पुत्री बीबी फातिमा के दूसरे पुत्र इम...