नई दिल्ली, दिसम्बर 16 -- भगवान क्षमा के सागर हैं। वह मनुष्यों को अपनी गलती को सुधारने का मौका जरूर देते हैं, परंतु मनुष्य अपने अहंकार में इतना चूर होता है कि वह सारे अवसरों को गंवा देता है। कभी-कभी वह भगवान को भी खरीदने का प्रयत्न करता है। एक प्रकार से रिश्वत देने का प्रयत्न करता है। मनुष्य अपने अज्ञान और अंहकार में आकर यही सोचता है कि एक तरफ बुरे काम हो रहे हैं, तो दूसरी ओर वह कुछ गरीबों या भगवान के नाम पर मंदिरों में दान करके या मंदिर बनवाकर सोचता है कि भगवान उसके बुरे कर्म को माफ कर देंगे। वह सारे बुरे कर्म की भोगना से छूट जाएगा। इस बात को समझने लिए एक उदाहरण प्रस्तुत है- मान लो हमने कोई व्यापार करने लिए किसी से पैसे उधार लिए हैं। व्यापार में मुनाफा होने पर हम सोचें कि किसी मंदिर में दान करते हैं। यह बहुत अच्छा विचार है, परंतु जिससे उध...
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