लखनऊ, दिसम्बर 22 -- लखनऊ की नजाकत और तहजीब की रूह कही जाने वाली चिकनकारी आज वैश्विक फलक पर चमक तो रही है, लेकिन इसे अपने खून-पसीने से सींचने वाले हाथ आज भी गुमनामी और गुरबत के अंधेरे में हैं। 'एक जिला, एक उत्पाद' (ओडीओपी) का गौरव हासिल होने के बावजूद, शहर और ग्रामीण इलाकों की करीब 03 लाख महिला कारीगरों की माली हालत चिंताजनक है। विडंबना देखिए कि जो उंगलियां धागे से कपड़े पर जादू उकेरती हैं, उनकी दिनभर की मेहनत एक अकुशल दिहाड़ी मजदूर की कमाई के बराबर भी नहीं पहुंच पाती। बड़े शोरूम्स में हजारों की कीमत पर बिकने वाले इन कुर्तों के पीछे की कड़वी सच्चाई यह है कि असली शिल्पकार को सिर्फ चंद रुपये नसीब होते हैं। इस बदहाली की सबसे बड़ी वजह बिचौलियों और ठेकेदारी व्यवस्था का मकड़जाल है, जो कारीगरों को सीधे उद्यमियों से जुड़ने नहीं देता। कच्चे माल और ...