मथुरा, अक्टूबर 3 -- एक समय था जब पुरुष प्रधान समाज की सोच थी महिलाएं घर से बाहर नहीं जाएं, वे सिर्फ घर में चौका-चूल्हा संभालें और बच्चों की देखभाल करें। लेकिन अब समाज की सोच बदल रही है। बेटियां पढ़ लिखकर आत्म निर्भर बन रही हैं। वे बड़े-बड़े ओहदों पर भी हैं और व्यवसाय भी कर रही हैं। आज वे अधिवक्ता बनकर युवा पीढ़ी को संदेश दे रहीं हैं कि लड़का-लड़की में कोई भेद नहीं है। दोनों कमाएंगे तो परिवार खुशहाल होगा। महिला अधिवक्ताओं का कहना है कि वह पीड़ितों को न्याय दिलाने के लिए अधिवक्ता बनी हैं। कुछ महिला अधिवक्ता ऐसी हैं, जो पड़ोसियों द्वारा परिवार के उत्पीड़न से परेशान होकर वकील बनी हैं। ताकि कोई उनके परिवार का उत्पीड़न नहीं कर सके और वह उत्पीड़न होने पर अदालत से न्याय पा सकें। महिला अधिवक्ता गरीबों को न्याय दिलाने के लिए न्यायालयों में उनकी आवाज बन रहीं ह...