पटना, अगस्त 24 -- दिहाड़ी मजदूरी करने वाली महिला श्रमिकों की जिंदगी संघर्षों से घिरी हुई है। निर्माण स्थलों, खेतों, फैक्ट्रियों और ईंट-भट्ठों पर दिन-रात पसीना बहाकर भी उन्हें उनका हक नहीं मिल पाता। कार्यस्थल पर न तो उन्हें सम्मान मिलता है, न सुरक्षा और न ही मेहनत के अनुरूप मजदूरी। पुरुषों के बराबर श्रम करने के बावजूद महिलाओं को कम भुगतान किया जाता है। वे अपने अधिकारों और सरकारी योजनाओं से भी वंचित हैं। महिला श्रमिकों का कहना है कि उन्हें काम की कमी का सामना करना पड़ता है। ज्यादातर ठेकेदार पुरुष मजदूरों को तरजीह देते हैं, जबकि महिलाओं को काम देने में हिचकिचाते हैं। सरकार की महत्वाकांक्षी मनरेगा योजना से भी उन्हें साल में बमुश्किल एक बार काम मिलता है, वो भी केवल कुछ ही दिनों के लिये। इससे उनके परिवार की रोजमर्रा की जरूरतें पूरी कर पाना लगभग...