भागलपुर, दिसम्बर 14 -- - प्रस्तुति : ओमप्रकाश अम्बुज/देवाशीष गुप्ता कटिहार की धरती सिर्फ एक जिला नहीं, बल्कि एक जीवंत स्मृति है। कभी यह इलाका पेड़ों की छांव, ठंडी हवाओं और हरियाली के लिए जाना जाता था। रास्तों के किनारे खड़े वृक्ष राहगीरों को सुकून देते थे, लेकिन अब उनकी जगह तपती सड़कें और उड़ती धूल ने ले ली है। विकास की रफ्तार बढ़ी, मगर प्रकृति पीछे छूटती चली गई। हर कटे पेड़ के साथ कटिहार ने अपनी एक सांस खो दी। कभी "मिनी दार्जिलिंग" कहलाने वाला यह इलाका अब तपती धूप और घटती हरियाली की मार झेल रहा है। शहर का बदलता मौसम अब सिर्फ तापमान का नहीं, बल्कि उसकी आत्मा के खोने का संकेत है। कटिहार अब अपनी पहचान, अपनी ठंडी सांस और वह छांव तलाश रहा है, जो कभी उसकी शान हुआ करती थी। जिस धरती को देवी सती के कटि-हार के गिरने का गौरव प्राप्त है, वही कटिहार ...