नई दिल्ली, अक्टूबर 4 -- बिहार इस समय राजनीति की रसगंगा में डूब-उतर रहा है। त्योहारों के इस मौसम में भी यहां के लोगों की बातचीत का विषय धर्म नहीं, चुनाव है। बिहारियों के लिए राजनीति से बड़ा कोई शगल नहीं। पिछले दो दशक के दौरान सियासी रूप से अति सचेष्ट इस सूबे में कहावत बन गई है कि नीतीश कुमार, जिसके साथ होंगे, वही चुनाव जीतेगा। यही वजह है कि भारतीय जनता पार्टी अपनी आदत के विपरीत यहां 'छोटे भाई' की भूमिका से संतुष्ट रहती है। नीतीश के 'बड़े भाई' लालू प्रसाद यादव का भी यही हाल है। जो घटक नीतीश कुमार के साथ नहीं होता, वह कटुता कितनी भी बघार ले, पर अंदर से उनके साथ के लिए लालायित रहता है। 2015 के महागठबंधन से 2017 में विलगाव के बावजूद लालू प्रसाद यादव ने अगस्त 2022 में इसीलिए नीतीश से हाथ मिला लिया था। महागठबंधन के इन दोनों सत्ता-काल में भाजपा के ...
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