लखनऊ, अक्टूबर 4 -- विद्युत कर्मचारी संयुक्त संघर्ष समिति ने निजीकरण के मसले पर कर्मचारियों का पक्ष रखने के लिए नियामक आयोग से समय मांगा है। संघर्ष समिति ने दावा किया है कि अगर पूर्वांचल और दक्षिणांचल विद्युत वितरण निगमों का निजीकरण हुआ तो 16,500 नियमित और 60,000 संविदा कर्मचारियों की छंटनी होगी। संघर्ष समिति ने आयोग से निजीकरण का प्रस्ताव रद्द करने की भी मांग की है। संघर्ष समिति के संयोजक शैलेंद्र दुबे ने कहा कि बिजली कर्मचारी और बिजली उपभोक्ता बिजली के सबसे बड़े हितधारक हैं। ऐसे में निजीकरण पर कोई फैसला देने से पहले दोनों पक्षों का सुना जाना जरूरी है। संघर्ष समिति बिजली कर्मचारियों का पक्ष रखने के लिए तैयार है। नियमित और संविदा कर्मचारियों की छंटनी के अलावा निजीकरण से कर्मचारियों व अभियंताओं को और भी नुकसान होंगे। बड़े पैमाने पर अभियंताओ...