बहुश्रुत जय मुनि, जून 24 -- उपनिषदों ने आदेश दिया- जीवन में त्यागपूर्वक भोग हो। पहले त्याग, फिर भोग। संसार का हित साधना त्याग है, अपना हित साधना भोग है। त्याग मनुजता है, देवत्व है तथा भोग पशुता और दनुजता है। भारत त्याग प्रधान देश है, रामजी ने राज्य का अधिकार त्यागा 14 वर्ष के लिए। महावीर, बुद्ध ने संसार त्यागा सर्वकाल के लिए। भगवान महावीर ने दशवैकालिक सूत्र के द्वितीय अध्ययन में कहा है- त्यागी उसे कहा जाए जो अपने अधीन भोगों को छोड़ता है। विवशतावश वस्तु का भोग न कर पाना त्याग नहीं है। स्वेच्छा से वस्तु का भोग न करना त्याग है, ऐसा त्यागी व्यक्ति ही त्याग का आनंद लेता है। विवशता में वस्तु का अभोग, अप्रयोग मन को पीड़ा ही प्रदान करता है, आनंद नहीं। यह भी पढ़ें- 18 जुलाई से इन 4 राशियों को लाभ के संकेत, बुध बदलेंगे अपनी चाल त्याग के तीन स्तर है...