रांची, अक्टूबर 19 -- झारखंड के खूंटी जिले में साल 1875 में जन्म लेने वाले एक आदिवासी बच्चे का नाम माता-पिता ने बड़े लाड़-प्यार से दाउद मुंडा रखा, लेकिन धीरे-धीरे अपने कामों के चलते समाज ने उसे 'भगवान' और 'धरती का पिता' (धरती आबा) कहना शुरू कर दिया। 'झारखंड गाथा' की इस कड़ी में पढ़िए भगवान बिरसा मुंडा के जीवन के दिलचस्प किस्से। जानिए आखिर उन्हें यह उपाधि क्यों मिली?क्यों कहते हैं धरती का पिता और भगवान? मुंडा जनजाति समेत आदिवासियों के लिए उनके द्वारा किए गए अहम योगदानों के लिए उन्हें भगवान का दर्जा दिया गया है। आदिवासी समाज द्वारा बिरसा मुंडा को धरती आबा के रूप में पूजा जाता है। धरती आबा यानी 'धरती का पिता'। क्योंकि, उन्होंने जल, जंगल और जमीन की रक्षा करने वाले समाज के लिए अहम लड़ाई लड़ी।'धरती आबा' और 'भगवान' बुलाने की कहानी बात साल 1897 की...