नई दिल्ली, दिसम्बर 18 -- जीवन को जीने के दो ढंग हैं- एक मालिक का और दूसरा गुलाम का। गुलाम का ढंग भी कोई ढंग है! जीना हो, तो मालिक होकर ही जीना, अन्यथा इस जीवन से मर जाना बेहतर है। प्रश्न जीवन का नहीं है। प्रश्न तुम्हारे मन का है। जीवन को मोक्ष की तरफ नहीं जाना है। जीवन तो मोक्ष है। जीवन नहीं भटका है, जीवन नहीं भूला है। जीवन तो वहीं है, जहां उसे होना चाहिए। तुम भटके हुए हो, तुम भूले हो। तुम्हारा मन तर्क की उलझन में है और यात्रा तुम्हारे मन से शुरू होगी। कहां जाना है, यह सवाल नहीं है। कहां से शुरू करना है, यही सवाल है। मंजिल की बात इसीलिए बुद्ध ने नहीं की। मंजिल की बात तुम समझ भी कैसे पाओगे? उसका तो स्वाद ही समझा सकेगा। उसमें डूबोगे, तब ही जान पाओगे। बुद्ध ने मार्ग की बात कही है। तुम जहां खड़े हो, तुम्हारा पहला कदम जहां पड़ेगा, बुद्ध ने उसकी ...