ओशो, दिसम्बर 16 -- चिंतन-मनन ध्यान नहीं है। इनमें बड़ा भेद है। केवल परिमाणात्मक ही नहीं, बल्कि गुणात्मक भेद है। वे भिन्न धरातलों पर अस्तित्व रखते हैं। उनके आयाम बिल्कुल ही भिन्न होते हैं। केवल भिन्न ही नहीं, बल्कि एकदम ही विपरीत होते हैं। यह पहली बात है समझ लेने की, चिंतन संबंध रखता है किसी विषय-वस्तु से। यह दूसरे की ओर जाती चेतना की एक गति है। चिंतन बहिर्मुखी ध्यान है, परिधि की ओर बढ़ता हुआ, केंद्र से दूर होता हुआ। ध्यान है केंद्र की ओर बढ़ना, परिधि से दूर हटना, दूसरे से दूर होना। चिंतन लक्षित होता है दूसरे की ओर, ध्यान लक्षित होता है स्वयं की ओर। चिंतन में द्वैत विद्यमान होता है। वहां दो होते हैं, चिंतन और चिंतनगत। ध्यान में केवल एक ही होता है।चिंतन और ध्यान में अंतर ध्यान के लिए अंग्रेजी शब्द मेडिटेशन बहुत उपयुक्त नहीं है। यह ध्यान या ...