नई दिल्ली, दिसम्बर 29 -- आचार्य चाणक्य की नीतियां जीवन को व्यावहारिक और सफल बनाने के लिए हैं। चाणक्य नीति का एक श्लोक है -धनधान्य प्रयोगेषु विद्या संग्रहणे च।आहारे व्यवहारे च त्यक्तलज्जः सुखी भवेत्॥ इसका अर्थ है कि धन कमाने-खर्च करने, अन्न संग्रह करने, विद्या प्राप्त करने, भोजन करने और व्यवहार करने में संकोच (लज्जा या हिचकिचाहट) त्याग देना चाहिए। संकोच करने से अवसर चूक जाते हैं और जीवन में कष्ट-परेशानी बढ़ती है। आचार्य चाणक्य कहते हैं कि इन क्षेत्रों में बिना हिचके आगे बढ़ने वाला व्यक्ति सुखी रहता है। आज के समय में भी यह नीति बहुत प्रासंगिक है। संकोच करने से सफलता दूर हो जाती है। आइए इस श्लोक के अर्थ और महत्व को विस्तार से समझते हैं।धन और अन्न के प्रयोग में संकोच ना करें आचार्य चाणक्य कहते हैं कि धन कमाने, खर्च करने और अन्न संग्रह करने मे...
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