सहारनपुर, सितम्बर 22 -- दिव्य ज्योति जाग्रति संस्थान द्वारा साउथ सिटी में आयोजित श्रीमद्भागवत कथा ज्ञान यज्ञ के सप्तम एवं समापन दिवस पर रुक्मिणी विवाह प्रसंग की मार्मिक व्याख्या की गई। साध्वी पद्महस्ता भारती ने कथा वाचन करते हुए बताया कि रुक्मिणी रूपी जीवात्मा प्रभु से मिलन के लिए विरह की अग्नि में तपती है और अंततः भगवान उसे सभी बंधनों से मुक्त कर लेते हैं। उन्होंने कहा कि मोक्ष का मार्ग गुरु द्वारा दिव्य नेत्र प्राप्ति से ही प्रशस्त होता है । उन्होंने कहा कि राजा परीक्षित केवल श्रीकृष्ण लीलाओं के श्रवण मात्र से नहीं, बल्कि पूर्ण गुरु शुकदेव से ब्रह्मज्ञान और दिव्य नेत्र प्राप्त कर मोक्ष को प्राप्त हुए। शास्त्रों में वर्णित है भिद्यते हृदयं ग्रन्थि, सच्छिद्यन्ते सर्व संशयाः अर्थात हृदय की अज्ञानता और संशय केवल गुरु कृपा से ही समाप्त होते ...