मुजफ्फरपुर, सितम्बर 11 -- मुजफ्फरपुर। जिले में नाट्यकर्मियों की नई पौध खिलने से पहले मुरझा रही है। रंगमंच पर जीवन के अनेक रंग बिखेरने वाले आज खुद बेरंग हैं। प्रशासनिक उपेक्षा के कारण सपनों की सांझ ढलने को हुई तो कइयों ने अंदर के कलाकार को मारकर दूसरों की दुकानों में मजदूरी का विकल्प चुन लिया। जिले के युवा रंगकर्मियों में हताशा का यह आलम है कि उन्हें अब दूर-दूर तक उम्मीद की कोई लौ नजर ही नहीं आती। इनका कहना है कि हमलोगों को न मंच मिल पाता है और न प्रोत्साहन। डिग्री हासिल करके भी बेरोजगार बैठे हैं। दूसरी विधाओं के युवा कलाकार सरकारी नौकरी में हैं और हम फाकाकशी में। नाटक को लेकर न कोई नीति है और न इसे जीविका से जोड़ने को लेकर सरकार के स्तर पर कोई योजना। ऐसे में गहरी निराशा के बीच उनके अंदर की कला उनसे सवाल कर रही है- 'ऐ जिंदगी नकाब उलटकर जवा...
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