देहरादून, सितम्बर 18 -- केदारनाथ जैसी आपदा के बाद भी हम नहीं चेते और रोक के बावजूद नदी-नालों के किनारे बेधड़क निर्माण होते रहे। हाईकोर्ट से लेकर एनजीटी और सुप्रीम कोर्ट तक ने नदियों के किनारे अतिक्रमण को लेकर सख्त रुख दिखाया, लेकिन सिस्टम की सख्ती नजर नहीं आया। आज हालात यह है कि नदियों का मूल स्वरूप बचा नहीं है और जब भारी बारिश के बीच नदियां उफान पर आ रही है तो अपनी राह में बने निर्माणों को ढहाती ले जा रही है। उत्तराखंड में नदियों के किनारे निर्माण की बहस ने केदारनाथ आपदा के बाद तेजी पकड़ी थी। तत्कालीन विजय बहुगुणा सरकार ने नदियों के किनारे निर्माण को लेकर नीति बनाने का ऐलान किया था। इधर, सरकारें बनती-बदलती गई और नदियों को लेकर सिस्टम की सुस्ती ने अतिक्रमण की बाड़ सी ला दी। देहरादून में तो रिस्पना-बिंदाल किनारे बसी बस्तियों को नियमित करना...