नई दिल्ली, जुलाई 8 -- जयंती रंगनाथन, वरिष्ठ पत्रकार वह 1990 की अप्रैल का एक चिपचिपाता दिन था, जब मैं मुंबई में सदाबहार अभिनेता देव आनंद से उनके दफ्तर में मिली थी। बातचीत के लिए उन्होंने अपने दफ्तर बुलाया था। साक्षात्कार की शुरुआत में ही गुरु दत्त का जिक्र आ गया। अपने बेहतरीन और थोड़े दीवाने दोस्त को याद करते हुए देव साहब ने कहा था, 'मैं और गुरु संघर्ष के साथी थे। प्रभात स्टूडियो में वह बतौर सहायक फिल्म निर्देशक व सहायक नृत्य निर्देशक संघर्ष कर रहा था और मैं नायक बनने की जद्दोजहद में लगा था। फाकाकशी के दिनों में न जाने कितनी बार मैं उसके घर गया, उसकी मां के हाथों का बना खाना खाया। वह अपनी हर चीज मेरे साथ बांटता था, सपने भी। हमने तय किया था कि सफलता भी हमारी साझी ही होगी। मगर जब दुख बांटने की बात आई, तो मेरा दोस्त अपना वादा भूल गया।' सन् 19...
Click here to read full article from source
To read the full article or to get the complete feed from this publication, please
Contact Us.