रांची, सितम्बर 23 -- इटकी, प्रतिनिधि। इटकी में लगभग 200 वर्षों से यहां जमींदार के वंशजों द्वारा दुर्गापूजा की जा रही है। जमींदार के वंशजों द्वारा महाषष्ठी, सप्तमी और अष्टमी को पाठा की बलि दी जाती है। जबकि नवमी को पाठा के अतिरिक्त भैंसा की बलि दी जाती है। वहीं दशहरा के मौके पर जमींदार के वंशजों द्वारा शिकार खेलने की परंपरा निभाई जाती है। इस दौरान जमींदार के वंशजों द्वारा प्रतिमा विसर्जन के बाद नीलकंठ का दर्शन कर राजशाही ठाट में त्रिविंधा नामक स्थल पर पहुंचकर शिकार खेलने की रस्म अदा की जाती है। यहां से लौटने के बाद महिलाएं उनकी आरती उतारती हैं और पुरोहित उनके माथे पर चंदन का टीका लगाकर उत्तराधिकारी राज्याभिषेक करते हैं। इसके बाद राजदरबार का आयोजन किया जाता है इसमें शामिल ग्रामीणों को जमींदार पानबट्टी देकर आशीर्वाद देते हैं। इसके बाद बड़ों के...
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