मेरठ, मार्च 13 -- मेरठ। भारतीय अंग्रेजी उपन्यासकारों को भारतीय दर्शन में ही समस्त विषयों का समाधान मिल सकता है। उन्हें भारतीय दर्शन ईमानदारी से आत्मसात करते हुए लिखना होगा। सीसीएसयू कैंपस के अंग्रेजी विभाग में मेटा मार्डनिज्म इन फिक्शन: लिटरेरी मेनिफेस्टेशन्स ऑफ द ऑनगोइंग कल्चरशिप विषय पर जारी दो दिवसीय सेमिनार के समापन में यह बात डीयू के प्रो.देवेंद्र सिंह ने कही। उन्होंने कहा कि लेखन की उत्पत्ति महर्षि वाल्मीकि द्वारा लिखित प्रथम अनुष्टप छन्द से होती है। रचनाकार जो देखता और भोगता है वही लिखता है। डॉ.विक्रम सिंह ने कहा कि मेटा मॉर्डनिज्म साहित्य के अतिरिक्त धर्म एवं राजनीति में भी देखा जा सकता है। उपन्यासकार प्रो.विकास शर्मा ने मैं क्यों लिखता हूं विषय पर अपनी बात रखी। प्रो.जीवन सिंह बख्शी, प्रो.संजय प्रसाद शर्मा, प्रो.शशिकांत त्रिपाठी, ...